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कालिदास के परवर्ती नाटककार
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प्रमाण नहीं था । वह विदूषक के द्वारा लाए हुए आभूषणों के आधार पर अपराधी घोषित किया गया और उसे फाँसी का आदेश दिया गया । उधर वसन्तसेना एक बौद्ध भिक्षुक की सेवा से कुछ होश में आती है । चारुदत्त वध के लिए वधगृह में लाया गया । उधर वसन्तसेना भी उसी स्थान पर बौद्ध भिक्षुक के साथ आती है । वसन्तसेना के कथन पर चारुदत्त मुक्त किया जाता है । झूठा अभियोग चलाने के अपराध में संस्थानक को बन्दी बनाया जाता है । उसने चारुदत्त से दयाभाव की प्रार्थना की । चारुदत्त ने उसको मुक्त कर दिया ।
इस नाटक का आधार ज्ञात नहीं है । इस नाटक के कथानक में वसन्तसेना के द्वारा मिट्टी की गाड़ी का आभूषणों से भरा जाना विशेष उल्लेखनीय घटना है, अतः नाटक का नाम मृच्छकटिक (मिट्टी की गाड़ी) उचित ही है । इस नाटक में जुना खेलना, चोरी और राजसैनिक के द्वारा भागे हुए बन्दी के लिए गाड़ी की जाँच करना आदि दृश्य बहुत वास्तविकता से युक्त हैं । इस नाटक का कथा-संघटन बहुत उत्तम है । नाटककार को संगीत, द्यूत और चोरी का पूर्ण ज्ञान था । यह दृश्यों में सुन्दरता के साथ प्रकट किया गया है । नाटककार ने रंगमंच पर सोना और हाथापाई का दृश्य उपस्थित करके नाटकीय परम्परा का उल्लंघन किया है । शूद्रक प्रभावोत्पादक चरित्र - चित्रण में बहुत पटु है । इसमें तीस पात्र हैं । ये सभी प्रकार के व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं । इसमें सुशिक्षित न्यायाधीश से लेकर वधिक तक पात्र हैं । अतएव यह नाटक सार्वजनीन प्रतीत होता है । इसके पात्र व्यक्ति हैं । अन्य नाटकों के तुल्य वे किसी श्रेणी के प्रतिनिधि नहीं हैं । इसमें शृङ्गार, हास्य और करुण रस है । इनमें से शृङ्गार इसमें प्रमुख है । इस नाटक का निर्णय है कि चरित्र मनुष्य को उच्च बनाता है । इसकी शैली सरल और स्वाभाविक है, परन्तु कालिदास के समान परिष्कृत नहीं है । लेखक ने विभिन्न प्रकार की प्राकृतों के प्रयोग में अपनी कुशलता दिखाई है । इसके पात्रों में से ६ संस्कृत बोलते हैं, १५ शौरसेनी और ७ मागधी । सं० सा० इ० -- १६
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