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कालिदासस के परवर्ती नाटककार
२३६ उसकी भाषा की सरलता, प्राकृत की विभिन्न-रूपता आदि से ज्ञात होता है कि वह हर्ष और भवभूति से बहुत पहले हुआ था । बौद्ध पात्र का स्वतन्त्रता के साथ घूमना, राज्य करने वाले राजा के प्रति प्रकटरूप से अस्वामिभक्ति, राजनीतिक कुचक्रों के द्वारा राज्य करने वाले राजा को हटाना, वेश्या को वैध विवाहित पत्नी मानना, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति का अस्थिर और निम्नकोटि का होना इत्यादि बातों से ज्ञात होता है कि यह नाटक ई० सन् के प्रारम्भ के लगभग बना है।
भास के तेरह नाटकों के प्रकाशन ने इस नाटक के लेखक के विषय में समस्या उत्पन्न कर दी है । इन तेरह नाटकों में से एक नाटक चारुदत्त की कथा इस नाटक के प्रथम चार अङ्कों की कथा से सर्वथा मिलती है। भास के समर्थकों का कथन है कि शूद्रक ने भास के चार अङ्कों में और ६ नए अङ्क मिला कर इसको मृच्छकटिक नाम दिया है। इसमें प्रारम्भिक चार अङ्क भास के चारुदत्त के ही अपनाए गए हैं और आगे के ६ अङ्क शुद्रक की रचना है। इस प्रकार शूद्रक ने अपूर्ण नाटक को पूर्ण किया है और पूरे नाटक का रचयिता अपने आपको लिखा।
भास के समर्थकों का यह कथन हास्यास्पद है । मृच्छकटिक में अन्तर्कथा राजनीतिक भाव को लेकर है । इस बात का श्रेय शूद्रक को ही है कि उसने एक राजनीतिक कथानक को प्रेमाख्यान से बहुत कुशलता के साथ संबद्ध कर दिया है । शूद्रक एक मौलिक लेखक है। वह अपनी रचना में दूसरे की रचना को सम्मिलित करने का साहस न करता और न उस ग्रन्थ को अपनी रचना बताता। यदि वह ऐसा करता तो उसकी प्रतिष्ठा को आँच पाती । इसकी अपेक्षा वह नया नाटक तैयार करता। इसके अतिरिक्त किसी साहित्य शास्त्री ने चारुदत्त को भास की रचना होने का उल्लेख नहीं किया है । चारुदत्त को मृच्छकटिक का ही संक्षिप्त संस्करण समझना चाहिए। सर्वप्रथम शूद्रक का नामोल्लेख करने वाला और मृच्छकटिक से उद्धरण देने वाला लेखक वामन ( ८०० ई० ) है । अतः शूद्रक को इसका लेखक मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।