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संस्कृत नाटक
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पाश्चात्य पालोचकों ने कालिदास पर यह दोषारोपण किया है कि उसने जीवन की समस्याओं को हल करने का कोई मार्ग या साधन नहीं बताया है। उनका यह दोषारोपण कालिदास के ग्रन्थों के अध्ययन से सर्वथा निराधार सिद्ध होता है । कालिदास की पद्धति यह है कि वह किसी बात को कहता नहीं है, अपितु उसको व्यंजना के द्वारा प्रकट करता है। उसके ग्रन्थों में ऐसी सैकड़ों सूक्तियाँ हैं जिनसे प्रत्येक व्यक्ति अपनी आवश्यकता के अनुसार इष्टसाधन कर सकता है। उसने जीवन की समस्याओं के हल के लिए स्वतंत्र कोई प्रबंध नहीं लिखा है, परन्तु उसने प्रत्येक समस्या के विषय में अपने विचार अवसर के अनुसार व्यक्ति किए है; उसने इन विषयों पर बहुत विस्तार के साथ अपने विचार व्यक्त किए हैं--त्याग का महत्त्व, अत्यधिक विषय-लिप्तता के दोष, प्रेम के दैवी-स्वरूप का महत्त्व, राजा आदि के कर्तव्यों का वर्णन । .