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२१६ . संस्कृत साहित्य का इतिहास प्रकार के रूपक-ग्रन्थ मृच्छकटिक और मालतीमाधव हैं । भाण एकांकी रूपक ग्रन्थ होता है। इसमें किसी धूर्त का जीवन-चरित होता है। इसमें मुख्य रस शृङ्गार या वीर होता है। इसमें एक ही पात्र होता है। वह आकाशभापित के रूप में सब बात कहता है । इसमें संगीत, नृत्य आदि भी सम्मिलित होते हैं । वामनभट्टबाण का शृङ्गारभूषणमाण इस प्रकार का रूपक है । प्रहसन एकांकी नाटक होता है। इसमें हास्य रस की प्रधानता होती है । इसमें हास्य-प्रधान दृश्य होते हैं । महेन्द्र विकार का भत्तबिलासप्रहसन इस प्रकार का रूपक है । डिम में चार अंक होते हैं। इसमें माया, इन्द्रजाल आदि का वर्णन होता है । इसकी कथा प्रसिद्ध होती है। इसमें देवता, राक्षस, अर्धदेवता, सर्प आदि पात्र होते हैं। इसमें शृङ्गार और हास्य को छोड़कर अन्य काई रस प्रधान होता है । वत्सराज का त्रिपुरविजय इस प्रकार का रूपक ग्रन्थ है। व्यायोग एकांकी नाटक होता है । इसमें प्रसिद्ध कथा होती है । इसका नायक धीरोद्धत होता है। इसमें युद्ध का दृश्य होता है, परन्तु उस युद्ध का कारण कोई स्त्री नहीं होनी चाहिए। शृंगार और हास्य को छोड़कर अन्य कोई रस इसमें मुख्य होता है । विश्वनाथ का सौगन्धिकाहरण इस प्रकार का रूपक है। समवकार में तीन अंक होते हैं । इसकी कथा प्रचलित होती है। इसमें युद्ध के दृश्य होते हैं। इसमें वीर रस मुख्य होता है । इसमें देवता और राक्षस पात्र होते हैं । वत्सराज का समुद्र प्रथन इस प्रकार का रूपक है । वीथी एकांकी नाटक होता है । इसमें दो या तीन पात्र होते हैं। इसमें शृंगार मुख्य रस होता है । रविपति का प्रेमाभिराम इस प्रकार का रूपक है। अंक एकांको नाटक होता है। इसमें करुण रस प्रधान होता है। इसमें रोने का वर्णन होता है । भास्कर का उन्मत्तराघव इस प्रकार का रूपक ग्रन्थ है । ईहामग में चार अंक होते है। इसका नायक देवता होता है । इसमें बलात् स्त्री के हरण का वर्णन होता है, परन्तु युद्ध नहीं होता । वत्सराज का रुक्मिणोहरण इस प्रकार का रूपक ग्रन्थ है । __उपरूपक के १८ भेद हैं। इनमें से नाटिका, सट्टक, त्रोटक और प्रेक्षणक मुख्य हैं । नाटिका बहुत-सी बातों में नाटक के ही तुल्य होती है । इसमें स्त्रीपात्र