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संस्कृत साहित्य का इतिहास उसने इस तथ्य को यक्ष की स्त्री, दुष्यन्त, शकुन्तला और पार्वती के चरित्र के द्वारा अच्छे प्रकार से स्पष्ट किया है। इस प्रसंग में उसने विदूषक का भी उचित उपयोग किया है । विदूषक निम्नकोटि के प्रेम-प्रसंगों को सुलझाने में बहुत सहायक होता है । मालविकाग्निमित्र में वह बहुत प्रमुख कार्यकर्ता है, परन्तु विक्रमोर्वशीय में वह केवल एक मूर्ख का कार्य करता है । शाकुन्तल में विदूषक केवल नाटकीय परम्परा के निर्वाह के लिए ही रक्खा गया प्रतीत होता है । उसने शकुन्तला को एक बार भी नहीं देखा है । कालिदास ने गौण पात्रों का भी चित्रण उसी सुन्दरता के साथ किया है। जैसे-दयालु कण्व और शकुन्तला की दोनों सखियों का चरित्र-चित्रण ।
कालिदास की शैली सरल, प्रवाहयुक्त और मनोरम है। यह पूर्णतया सुसंस्कृत है। इसमें संशोधन और परिवर्तन या सुधार किसी के द्वारा किया जाना संभव नहीं है । इसमें अधिकांशतः शब्द जन-सधारण में प्रचलित ही लिए गए हैं । उसकी भाषा संक्षिप्त और ध्वन्यात्मक है । उसके श्लोकों में लम्बे समास नहीं है । उसके नाटकों में संवाद संक्षिप्त और सरल हैं। कालिदास वैदर्भी रीति के आचार्य हैं । देखिए :
वाल्मीकेरजनि प्रकाशितगुणा व्यासेन लीलावती। वैदर्भी कविता स्वयं वृतवती श्रीकालिदासं वरम् ।।
वैदर्भीरीतिसन्दर्भ कालिदासः प्रगल्भते । वह प्रकृति के वर्णन में बहुत पटु है । वह उसको सजीव-सा वर्णन करता है । उसमें यह असाधारण शक्ति है कि वह कठिनाई के अवसरों पर मनप्य के हृदय की भावनाओं को अच्छी प्रकार समझता है। उसका प्रेम-वर्णन प्रशंसनीय है । देखिए :
एकोऽपि जीयते हन्त कालिदासो न केनचित् ।
श्रृङ्गारे ललितोद्गारे कालिदासत्रयी किमु ।। उसने उपमा के लिए समुचित समवस्तुओं का संग्रह किया है, अतएव वह उपमा के लिए सबसे अधिक प्रसिद्ध है । इसीलिए कहा गया है--उपमा