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संस्कृत नाटक
२२५ आई और उदयन को पद्यावती समझकर वहाँ सो गई । उदयन ने नींद में वासवदत्ता का नाम लेना प्रारम्भ किया । वासवदत्ता अपना भेद गुप्त रखने के लिए वहाँ से शीघ्र ही चली गई। उधर मगध राजा की सहायता से कौशाम्बी का नष्ट राज्य उदयन को पुनः प्राप्त हो गया। तत्पश्चात् वासवदत्ता और यौगन्धरायण ने अपना भेद प्रकट किया । इस प्रकार नाटक सुखान्त समाप्त होता है । यह नाटक भास के नाटकों में सबसे अधिक प्रसिद्ध है और सर्वोत्तम है। नाटकीय परम्परा के विरुद्ध भास ने इस नाटक में रगमंच पर राजा के सोने का दृश्य उपस्थित किया है ।
( ३ ) चारुदत्त । इसमें चार अंक हैं। इसमें एक ब्राह्मण चारुदत्त का एक वेश्या वसन्तसेना से प्रेम का वर्णन है । वसन्तसेना भी चारुदत्त से प्रेम करती है । एक दिन वसन्तसेना ने अपने आभूषण चारुदत्त के पास रखे कि रात्रि में चोर उसे चुराकर न ले जाएँ । कुछ समय चारुदत्त के साथ रहकर वह अपने घर जाती है । विलक नाम का एक चोर चारुदत्त के घर में रात्रि में सेंध लगाकर घुसता है और वसन्तसेना के आभूषण चुराकर ले जाता है और अगले दिन प्रातः जाकर वसन्तसेना को देता है कि वह उसकी प्रेमिका मदनिका को अपनी सेवा से मुक्त कर दे । यह नाटक यहाँ पर समाप्त होता है। भास के समर्थकों का कथन है कि शूद्रक ने इसी नाटक के आधार पर अपना नाटक मृच्छकटिक लिखा है।
( ४ ) अविमारक । इसमें ६ अंक हैं । इसमें राजा कुन्तिभोज की पुत्री कुरंगी और राजकुमार अविमारक के गुप्त प्रेम का वर्णन है । शाप के कारण अविमारक का राजत्व नष्ट हो गया था । कुन्तिभोज के घर में किसी को भी अविमारक का परिचय ज्ञात नहीं था, अतएव वह गुप्तरूप से कुरंगी से मिला। अन्त में नारद मुनि ने अविमारक का परिचय बताया और दोनों प्रेमियों का विवाह हो गया ।
कुछ समय हुआ एक नाटक यज्ञफल नाम का प्राप्त हुआ है। इस नाटक में भी भास के अन्य नाटकों वाली विशेषतायें प्राप्त होती हैं, अतः इसको
सं० सा० इ०--१५