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संस्कृत साहित्य का इतिहास
विक अर्थ हैहै--नाटक के क्रिया-कलाप का नियन्ता । सुखान्त नाटक मनुष्य के प्रारम्भिक जीवन के सुख के अनुभव का अभिव्यंजन है । इसमें हास्य और चातुर्य का संमिश्रण होता है । अतः नाटक की उत्पत्ति गुड़िया के खेल और छाया - दृश्य पर निर्भर नहीं रह सकती थी । वस्तुतः नाटकों का जन्म इनसे बहुत पूर्व हो चुका था ।
संस्कृत नाटकों की विशेषताएँ
जीवन की अवस्थाओं के अनुकरण का नाम नाट्य है । भरत ने निम्नलिखित शब्दों में नाट्य का उद्देश्य बताया हैउत्तमाधममध्यानां नराणां कर्मसंश्रयम् । हितोपदेशजननं धृतिक्रीडासुखादिकृत् । दुःखार्तानां समर्थानां शोकार्तानां तपस्विनाम् ।
विश्रान्तिजननं काले नाट्यमेतन्मया कृतम् । नाट्यशास्त्र १. ११४- ११५ । नाटक का उद्देश्य यह है कि वह जनमात्र के लिए आमोद, मनोरंजन और सुख देने वाला हो । अस्थिर चित्त मनुष्यों को उचित उपदेश दे । दुःखपीड़ित और शोकग्रस्तों को शान्ति प्रदान करे । कार्य करने में समर्थ व्यक्तियों को तथा तपस्विवर्ग को आवश्यक मनोरंजन प्रदान करे । नाटकों के इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन सभी घटनाओं और कार्यों का संग्रह किया गया, जिससे उनका यह उद्देश्य पूर्ण हो । अतः नाटककारों का यह कर्त्तव्य हो गया है कि वे मानव-जीवन की सभी घटनाओं को सुबोध और विश्वसनीय ढङ्ग से प्रस्तुत करें तथा रचना इस प्रकार की हो कि दर्शकों को आनन्द प्रदान कर सके ।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए नाटककार को मानव-जीवन की उन अवस्थानों को चित्रित करना पड़ा, जिनसे नाटक वास्तविक प्रतीत हो । साथ ही जीवन की कठोर वास्तविकताओं को छोड़ना पड़ा, क्योंकि उनसे दर्शकों के मन पर ठीक प्रभाव नहीं पड़ता और उन्हें उसमें आनन्द प्राप्त नहीं होता ।
१. अवस्थानुकृतिर्नाट्यम् ।