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संस्कृत नाटक, उनकी उत्पत्ति, उनकी विशेषताएँ और उनके भेद २०३
उन्होंने नाटकों की उत्पत्ति में स्वयं साक्षात् कोई प्रभाव नहीं डाला । संस्कृत नाटकों में संगीत का तत्त्व प्रमुख होता है । रामायण, महाभारत और छोटी कहानियों से संगीत के लिए सामग्री प्राप्त हुई । रामायण और महाभारत का यज्ञादि के अवसर पर पारायण होता था । इनके द्वारा नाटकों के लिए पाठ्य की सामग्री प्राप्त हुई । नाटकों पर रामायण और महाभारत का प्रभाव इस बात से स्पष्ट है कि नाटकों की अधिक सामग्री रामायण और महाभारत से ली गई है । वैदिक कर्मकाण्ड का प्रभाव नाटकों पर इस बात से स्पष्ट है कि इनके प्रदर्शन के लिए धार्मिक उत्सव या देवपूजा आदि के अवसर रुचिकर समझे गये । नाटकीय अभिनयों की उत्पत्ति दैनिक संकेतादि के अनुकरण से समझनी चाहिए, इसका पृथक् श्राविष्कार मानना उचित नहीं है । नाटकों में पुरुष पात्रों और स्त्री पात्रों का विभाजन है । इसी प्रकार पात्रों के द्वारा प्रयुक्त भाषा में भी भेद होता है । इससे सिद्ध होता है कि नाटकों की उत्पत्ति धार्मिक और लौकिक वातावरण में हुई है । मालविकाग्निमित्र का निम्नलिखित श्लोक इस बात को सिद्ध करने में सहायक हो सकता है -
देवानामिदमामनन्ति मुनयः कान्तं रुद्रेणेदमुमाकृतव्यतिकरे स्वाङ्गे त्रैगुण्योद्भवमत्र लोकचरितं
नाट्यं भिन्नरुचेर्जनस्य बहुधाप्येकं
चाक्षुषं
द्विधा ।
दृश्यते
समाराधनम् ||
-- मालविकाग्निमित्र १ - ४
विभक्तं
नानारसं
वैदिक काल के पश्चात् जब रामायण और महाभारत लिखे गये हैं, उस समय नाटकों का जन्म हुआ है ।
यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता है कि कब सबसे प्रथम नाटकीय ग्रन्थ लिखा गया । तथापि कतिपय प्रमाणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्राचीन काल में नाटकीय ग्रन्थ विद्यमान थे । नट, कुशीलव तथा अन्य नाटकीय शब्द प्राचीन वैयाकरण पाणिनि ( ८०० ई० पू० ) के ग्रन्थ अष्टाध्यायी में उपब्ध होते हैं । पतंजलि ने क्रिया की वर्तमानकालि -