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गीतिकाव्य
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है । इसमें विष्णु की स्तुति में ४३ पद्य हैं । गंगालहरी का दूसरा नाम पीयुपलहरी है । इसमें गंगा नदी की स्तुति में ५२ पद्य हैं । इनमें से अन्तिम दो भाव और भाषा की दृष्टि से सर्वोत्तम हैं । नीलकण्ठ दीक्षित ( १६५० ई० ) ने दी गीतिकाव्य लिखे हैं - आनन्दसागरस्तव और शिवोत्कर्षमंजरी । प्रथम में पार्वती की भक्ति से प्राप्त ग्रानन्द का वर्णन है और द्वितीय में सर्वश्रेष्ठ देवता के रूप में शिव का महत्व बताया गया है | वेंकटाध्वरी ( १६५० ई० ) ने लक्ष्मीसहस्र नामक गीतिकाव्य एक सहस्र पद्यों में लक्ष्मी और विष्णु की स्तुति के रूप में लिखा है । सभी पद्य बहुत कठिन हैं और लेखक की प्रयत्नसाध्य शैली को सूचित करते हैं । इनमें कल्पना बहुत उच्चकोटि की है । रामभद्र दीक्षित ( १७०० ई०) श्री राम की भक्ति में अनुपम है। उसने राम की स्तुति में १० गीतिकाव्य लिखे है । इनमें से एक राम के बाण की स्तुति में रामबाणस्तव है | अद्भुतसीतारामस्तोत्र है, इसमें सीता और रामको स्तुति है । एक संन्यासी नारायणतीर्थ ( १७०० ई० ) ने १२ तरंगों में कृष्णलीलातरंगिणी नामक गीतिकाव्य लिखा है । इसमें श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन है । ये पद्य वाद्य की सहायता से कई लय में गाए जा सकते हैं । त्यागराज, श्यामशास्त्री और मुठुस्वामी दीक्षित ये गत शताब्दी के दक्षिण भारत के संगीतज्ञों और गीतिकाव्यकारों की त्रयी हैं । ये अपने भावों की गम्भीरता, भक्ति की सात्विकता और भाषा की मधुरता के लिये प्रसिद्ध हैं ।
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