________________
संस्कृत साहित्य का इतिहास
हो गया था । दंडी ६५५ ई० के कुछ समय बाद कांची लौटा होगा । ग्रतः वह सातवीं शताब्दी ई० के उत्तरार्ध में रहा होगा । यदि अवन्तिसुन्दरीकथा का लेखक दंडी ही काव्यादर्श का लेखक है, तब यह समय उचित प्रतीत होता है । पुलकेशी द्वितीय के ज्येष्ठ पुत्र राजा चन्द्रादित्य की धर्मपत्नी और कवयित्री विजया ने काव्यादर्श के मंगलाचरण के श्लोक को उद्धृत किया है । चन्द्रादित्य ६४२ ई० के बाद एक प्रान्त का राजा था । पल्लव राजाओं और चालुक्य राजानों में परस्पर सम्बन्ध था । यह संभव है कि दंडी का काव्यादर्श रचना के बाद ही चालुक्य राज्य में प्रचलित हो गया होगा । यहाँ पर यह कथन उचित है कि अवन्तिसुन्दरीकथा की जो हस्तलिखित प्रति प्राप्त हुई है, वह अपूर्ण है और उसका पाठ्य भी त्रुटिपूर्ण है । उसमें दण्डो के समय के निर्धारण के लिए निश्चित सूचना प्राप्त नहीं होती है ।
१७४
अवन्तिसुन्दरीकथा
हर्षचरित के अनुसार ही कतिपय श्लोकों से प्रारम्भ होती है । उसमें बहुत से कवियों के नाम दिए हुए हैं । वाल्मीकि, व्यास, सुबन्धु, गुणाढ्य, शूद्रक, भास, प्रवरसेन, कालिदास, नारायण, वाण और मयूर का नाम स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है । कुछ श्लोकों में बीच का भाग अप्राप्य है, अतः उन श्लोकों में जिन कवियों का उल्लेख रहा होगा, उनके विषय में कुछ ज्ञात नहीं हो सका है । इन श्लोकों के पश्चात् गद्य में कथा प्रारम्भ होती है । इसमें कांची नगरी का वर्णन है और दण्डी आत्मकथा लिखी है । इसके बाद अवन्तिसुन्दरीकथा की कथा प्रारम्भ होती है । भाव की दृष्टि से यह दशकुमारचरित की पूर्वपीठिका के समान है । यह प्रहारवर्मा के अपने पुत्रों के वियोग के वर्णन के साथ समाप्त होती है ।
इसकी शैली कादम्बरी की शैली से बहुत मिलती हुई है । दण्डी ने कांची से बाहर रहने के समय बाण की कादम्बरी पढ़ी होगी । वर्णनों में भी दण्डी बाण का बहुत ऋणी है ।