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संस्कृत साहित्य का इतिहास भेजा। उसे कन्दर्पकेतु मिला और वह वासवदत्ता की नगरी में आया तथा वासवदत्ता को भगा ले गया। वासवदत्ता के पिता की सेना ने दोनों का पीछा किया और वे एक निषिद्ध उपवन में पहुँचे। वहाँ पर वासवदत्ता पत्थर के रूप में परिवर्तित हो गई। इस पर कन्दर्पकेतु अात्महत्या करने के लिए उद्यत हो गया। इतने में आकाशवाणी हुई और उसने कहा कि तुम्हारा मिलन फिर अपनी प्रिया से होगा, अतः आत्महत्या न करो । उसने उसी उपवन में दुःखमय समय बिताया। एक दिन उसने अकस्मात् उस पत्थर को छपा और उससे वह वासवदत्ता जीवित हो उठी। तब दोनों का सुखमय पुनर्मिलन होता है । लेखक ने गौड़ी रीति में यह ग्रन्थ लिखा है । इसमें सूक्ष्म पौराणिक कथाओं के संकेत हैं तथा विभिन्न प्रकार का शब्दकोष प्रयोग किया गया है। लेखक ने इस बात का बड़े गौरव के साथ उल्लेख किया है कि इस ग्रन्थ के प्रत्येक अक्षर में श्लेष अलंकार है। देखिए :
सरस्वतीदत्तवरप्रसादश्चक्रे सुबन्धुः सुजनैकबन्धुः । प्रत्यक्षरश्लेषमयप्रपंचविन्यासवैदग्ध्यनिधिं प्रबन्धम् ।।
-वासवदत्ता २९६ धनपाल ने ६७३ ई० के लगभग तिलकमंजरी ग्रन्थ लिखा है । इसमें राजकुमारी तिलका और राजकुमार समरकेतु के प्रेम का वर्णन है । यह ग्रन्थ कादम्बरी के पूर्ण अनुकरण पर लिखा गया है । धनपाल ने अपने को प्रसिद्ध विद्वान् सर्वदेव का पुत्र उल्लिखित किया है । वह धारानरेश मुंज का
आश्रित था। भूमिका-भाग में उसने वाल्मीकि, व्यास, प्रवरसेन, जीवदेव. कालिदास, बाण, समरादित्य, भद्रकोर्ति, माघ, भारवि, भवभति, वाक्पतिराज और राजशेखर का उल्लेख किया है । वहीं पर बृहत्कथा और तरंगवती इन दो ग्रन्थों का भी उल्लेख है।
१. तिलकमंजरी ५२ । २. तिलकमंजरी ५३ ।