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संस्कृत साहित्य का इतिहास पूर्वजन्म की घटनाएँ बताई। एक सुदत्तमुनि ने राजा को इस प्रकार के यन को निरर्थकता बताई। वह राजा जैन हो गया । इस ग्रन्थ के अन्तिम तोन अध्याय जैन धर्म की प्रसिद्ध पुस्तिका है। कादम्बरी की तरह इसमें भी कथा में कथा वणित हैं। लेखक ने प्रारम्भिक श्लोकों में भारवि, भवभूनि भर्तृहरि, मेण्ठ, गुणाढ्य, भास, कालिदास, बाण, मयूर, नारायण, माव राजशेखर तथा भारतप्रमितकाव्याध्याय आदि का नामोल्लेख किया है । यह चम्पू यशोधर्मराजचरित नाम से भी विख्यात है ।
भोज ने रामायणचम्पू लिखा है । मुद्रित पुस्तक में अन्त में लेखक का नाम नहीं लिखा है, अपितु लेखक को विदर्भराज कहा गया है । भारतीय परम्परा के अनुसार मालवा में स्थित धारा का राजा इसका लेखक है । विदर्भ और मालवा दो विभिन्न स्थान हैं, अतः इन दोनों स्थानों के राजा भी पथक् व्यक्ति होंगे। अब तक जो सामग्री उपलब्ध है, उसके आधार पर भोज को विदर्भराज कहना संभव नहीं है । भोज के राज्य का समय १००५ से १०५४ ई० के बीच में है, अत: इस ग्रन्थ का समय ११वीं शताब्दी का पूर्वार्ध होता है । राजा भोज ने यह चम्पू सुन्दरकाण्ड के अन्त तक लिखा है, युद्धकाण्ड बाद में लक्ष्मण नाम के किसी व्यक्ति ने लिखा है । यह चम्पू वैदर्भी रीति में लिखा गया है। यह सर्वोत्तम चम्पूग्रन्थों में से एक है । वर्णनों में उच्चकोटि की कल्पना है। उनमें अनुप्रास और चित्त को बरबस खींच लेने वाली उपमानों का प्रयोग किया गया है । ऐसा जान पड़ता है कि उनमें से कुछ वर्णनों पर कुमारदास का प्रभाव पड़ा है।
अभिनवकालिदास (१०५० ई०) ने भागवतचम्पू लिखा है। इसमें : १. रामायणचम्पू बालकाण्ड ४१ ।
रामायणचम्पू अयोध्याकाण्ड ७० ।
रामायणचम्पू सुन्दरकाण्ड १७, २० । २. अयोध्याकाण्ड ३३ ।