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चम्पू
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किया, उसके उत्तर में त्रिविक्रमभट्ट ने यह रचना की । जब उसके पिता आये, तब उसने आगे रचना बन्द कर दी और ग्रन्थ को अपूर्ण छोड़ दिया । इसमें सात उच्छवास हैं और नल तथा दमयन्ती की कथा वर्णित है । प्रत्येक उच्छ्वास के अन्तिम श्लोक में हरचरणसरोज शब्द है । इसमें नल के मन्त्री सालंकायन ने नल को जो उपदेश दिया है वह कादम्बरी में चन्द्रापीड को दिये वैशेषिक आदि शुकनास के उपदेश के अनुकरण पर है । लेखक ने न्याय, दर्शनों से भी उदाहरण लिये हैं । प्रारम्भिक श्लोकों में लेखक ने वाल्मीकि, व्यास, बाण और गुणाढ्य का उल्लेख किया है । इस ग्रन्थ की शैली क्लिष्ट है । त्रिविक्रमभट्ट ने एक और चम्पू ग्रन्थ मदालसाचम्पू लिखा है । राष्ट्रकूट राजा इन्द्र तृतीय के ९१५ ई० के नौसारी दानपत्र का लेखक त्रिविक्रमभट्ट ही है । उसके पिता का नाम नेमादित्य था । त्रिविक्रमभट्ट का समय १० वीं शताब्दी का पूर्वार्ध ही मानना चाहिये ।
एक जैन लेखक हरिचन्द्र ने जैन मुनि जीवन्धर के जीवन को लेकर जीवन्धरचम्पू लिखा है । यह ग्रन्थ ८५० ई० के लगभग गुणभद्र द्वारा लिखे गये उत्तरपुराण पर आधारित है । अतः लेखक ६०० ई० के बाद हुआ होगा । उसने माघ और वाक्पति का सफलतापूर्वक अनुकरण किया है । यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता है कि धर्मशर्माभ्युदय का लेखक और यह एक ही व्यक्ति हैं ।
नेमिदेव के शिष्य सोमदेव ने ६५६ ई० में यशस्तिलक लिखा है । इसमें
प्रश्वास हैं । वह राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय, जिसका दूसरा नाम कृष्णराजदेव था, का आश्रित कवि था । उसने राजा मारिदत्त के द्वारा किये जाने वाले यज्ञ का वर्णन किया है, जिसमें वह अपने परिवार की इष्टदेवी को प्रसन्न करने के लिए सभी प्राणियों का एक-एक जोड़ा बलि देने के लिए तैयार करता है । मनुष्यों का भी एक जोड़ा बलि के लिए तैयार करता है । उसने अल्प आयु के एक बालक और एक बालिका को, जो कि जुड़वा उत्पन्न हुए थे, बलि के लिए तैयार किया । उन्होंने राजा को अपने तथा उसके