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संस्कृत साहित्य का इतिहास
जीवनचरित वर्णित है । वासुदेवरथ ने १४२० ई० के लगभग चम्पू रीति में गंगावंशानुचरित लिखा है । इसमें कलिंग पर राज्य करने वाले गंगा वंश का इतिहास वर्णित है । रामानुजाचार्य ( १६०० ई०) ने रामानुजचम्पू लिखा है । इसकी शैली बड़ी सुन्दर और सरल है । इस चम्पू में विशिष्टाद्वैत वेदान्त के प्रवर्तक रामानुज के जीवन का वर्णन किया गया है । अनन्तभट्ट ने १२ स्तबकों में भारतचम्पू लिखा है । ग्रन्थ के अन्त में लेखक के विषय में उल्लेख मिलता है कि वह एक यशस्वी व्यक्ति था और मधुर काव्य का प्रणेता था; सम्भव है लेखक ने स्वयं ऐसा किया हो । नारायणभट्ट ( १६०२ ई० ) ने अनन्तभट्ट का उल्लेख किया है । अतः उसका समय १५०० ई० के लगभग मानना उचित है | विजयनगर के राजा अच्युतराय ( १५४० ई० ) की धर्मपत्नी रानी तिरुमलाम्बा ने वरदाम्बिकापरिणयचम्पू लिखा है । इसमें उसने अपने पति का राजकुमारी वरदाम्बा के साथ विवाह का वर्णन किया है । इस चम्पू की रचना सुन्दर और आकर्षक शैली में की गई है । यह स्थान-स्थान पर भंगश्लेष के प्रयोग में लेखिका के कौशल को व्यक्त करता है । इसका समय १५५० ई० के लगभग मानना चाहिये । नारायणीय के लेखक नारायणभट्ट ( १६०० ई०) ने पाञ्चालीस्वयंवरच-पू लिखा है । इसमें द्रौपदी के स्वयंवर का वर्णन है । यह सुन्दर और सरल शैली में लिखा गया है । यह लम्बे समासों और श्लेषों से पूर्णतया मुक्न है । लगभग उसी समय समरपुंगव दीक्षित ने यात्राबन्ध नामक लिखा । इसमें & आश्वास हैं तथा उत्तर और दक्षिण के समस्त तीर्थस्थानों का वर्णन है । नीतिग्रन्थ वोरमित्रोदय के लेखक मित्र मिश्र ( १६२०ई० ) ने श्रीकृष्ण के बाल - जीवन पर आनन्दकन्दचम्पू लिखा है । ग्रन्थ भंगश्लेष से गूंथा हुआ है । राघवपाण्डवयादवीय के लेखक चिदम्बर ( १६०० (०) ने भागवत की कथा के आधार पर भागवतचम्पू लिखा है । शेष कृष्णा ( १६०० ई०) ने पाँच अध्यायों में पारिजातहरणचम्पू लिखा है । इसमें श्रीकृष्ण के द्वारा स्वर्ग से पारिजात के लाने का वर्णन है ।
ग्रन्थ