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संस्कृत साहित्य का इतिहास
नहीं किया है, अपितु अप्रचलित विरोधाभास, आक्षेप, परिसंख्या, वक्रोक्ति आदि अलंकारों का भी बड़ी सफलता के साथ प्रयोग किया है ।
वेबर ने बाण की शैली की आलोचना करते हुए लिखा है कि - "यह एक भारतीय जंगल है । इसमें यात्री जब तक अपने लिए स्वयं झाड़ियों को काटकर मार्ग न बनावे, तब तक उसके लिए मार्ग मिलना असम्भव है । इसके बाद भी अप्रचलित शब्दों के रूप से भयंकर जंगली पशु उसको भान्वित करते हुए प्राप्त होते हैं ।" यह सत्य है कि बाण के द्वारा प्रयुक्त श्लेषों में शब्दों की खींचातानी हुई है और उसने जिन कथानकों का संकेत किया है, उनमें से बहुत से प्रचलित हैं । बाण की रचना उनके लिए ही भयावह है, जिन्होंने संस्कृत साहित्य का समुचित रूप से अध्ययन नहीं किया है । अतः बाण के ग्रन्थों का रसास्वाद न लेने में पाठक की अनभिज्ञता ही कारण है, न क बाण की रचना - शैली । भारतीय लेखकों ने बाण की योग्यता और उसके गुणों की बहुत बल के साथ प्रशंसा की है । गोवर्धन, त्रिविक्रम, धनपाल, धर्मदास, सोड्ढल, सोमेश्वर आदि ने समुचित शब्दों में बाण की शैली की प्रशंसा की है । बाण ने गद्य-काव्य के लिए जो उच्च स्तर प्रस्तुत किया है, उसके कारण ही बाण के पूर्ववर्ती कतिपय गद्य साहित्य के ग्रन्थ लुप्त हो गए हैं । महान् नैयायिक जयन्त भट्ट ( ८८० ई० ) ने इन शब्दों में बाण की प्रशंसा की है-'प्रकट रसानुगुणविकटाक्षररचनाचमत्कारितसकलकविकुला बाणस्य वाचः । -- न्यायमञ्जरी पृष्ठ १,२१५ भूषणबाण योग्य पिता का योग्य पुत्र था । उसने कादम्बरी को पूर्ण किया है । यद्यपि बाण के तुल्य उसकी विशेष प्रशंसा नहीं की जा सकती है, तथापि उसमें कव-प्रतिभा थी ।
बाण के बाद दण्डी प्रमुख गद्य लेखक है । उसके जीवन चरित आदि के विषय में कोई निश्चित सूचना प्राप्त नहीं होती है । ऐसा ज्ञात होता है कि उसे 'दण्डी' उपाधि प्राप्त हुई थी । उसका वास्तविक नाम अज्ञात है । यह निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है कि वह कब और कहाँ उत्पन्न हुआ था । कई आलोचकों ने उसका सम्बन्ध कालिदास के साथ स्थापित करने का प्रयत्न किया है । कुछ