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वास्तविक घटनाओं पर आश्रित है, अतः उसमें बाण को अपनी प्रतिभा के प्रकाशन का उत्तम अवसर प्राप्त नहीं हुआ है । कादम्बरी भाव, भाषा और शैली सभी दृष्टि से हर्षचरित से उत्कृष्ट है । अतएव यह उचित ही कहा गया है कि ' कादम्बरी के रसज्ञों को भोजन भी अच्छा नहीं लगता' ।
कादम्बरीरसज्ञानामाहारोऽपि न रोचते । ।
गद्यकाव्य
बाण की रचनाएँ पांचाली रीति में हैं। पांचाली रीति के सर्वश्रेष्ठ कवियों वाण और कवयित्री शीलाभट्टारिका का नाम उल्लिखित है ।" शीलाभट्टाfor का कोई ग्रन्थ आजकल प्राप्त नहीं है । बाण की शैली की कई प्रमुख विशेषताएँ हैं । उसने समासों का बहुत प्रयोग किया है । समासों का अस्तित्व गद्यशैली की प्रमुख विशेषता मानी गई है । बाण ने अपने ग्रन्थों की रचना साहित्यिकों के द्वारा निर्धारित नियमों का पूर्णतया पालन करते हुए की है । श्लेष और विरोधाभास के कठिन प्रयोगों के होते हुए भी उसकी कविता का महत्व नहीं घटा है । यहाँ पर यह स्मरण रखना उचित है कि संस्कृत साहित्य के आलोचकों ने बहुत से कवियों की रचनाओं की बहुत कटु समालोचना की है, किन्तु बाण और कुछ थोड़े से कवि ऐसे हैं, जो उन आलोचकों की कठोरतम परीक्षा में सफल हुए । बाण का शब्दकोष असा - धारण रूप से विशाल है । उसने बहुत लम्बे वाक्यों के पश्चात् सहसा छोटेछोटे वाक्य दिए हैं। उसने वर्णनों में लम्बे समासों का प्रयोग किया है, परन्तु वार्तालाप में ऐसे लम्बे समासों का सर्वथा अभाव है । अतएव उसकी शैली सन्तुलित है । वह भाव के अनुसार ही शैली को अपनाता है । उसने केवल अति प्रचलित उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का ही प्रयोग
१. शब्दार्थयोस्समो गुम्फः पांचाली रीतिरिष्यते ।
शीला भट्टारिकावाचि बाणोक्तिषु च सा यदि || जल्हण की सूक्तिमुक्तावली ।
२. प्रोजः समासभूयस्त्वमेतद् गद्यस्य जीवितम् ॥ दण्डी का काव्यादर्श १.८० ।