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संस्कृत साहित्य का इतिहास
आकार में छोटे हैं, परन्तु भाव और भाषा की उत्कृष्टता की दृष्टि ने अन्य काव्यों के तुल्य ही महत्त्वपूर्ण हैं । __अप्पयदीक्षित काँची के निवासी थे। उनका जन्म १५५४ ई० में हत्या था । उसने विभिन्न विषयों पर अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। उसका वरदराजस्लव काँची के देवता वरदराज की स्तुति के रूप में है। इसमें १०० पद्य हैं और उन पर लेखक की टीका भी है । इस गीतिकाव्य से स्पष्ट रूप से ज्ञात होना है कि लेखक मौलिकता और कल्पना की दृष्टि से प्रतिभाशाली और महान कवि है।
नारायणभट्ट केरल के मेप्पथ स्थान का निवासी था । वह सहन कवि था। उसकी प्रतिभा सर्वतोमुखी थी। उसके अनेक ग्रन्थ हैं । उनके गीतिकाव्यों में नारायणीयम सर्वोत्तम है। उसने यह १५८५ ई० में लिखा है, जब वह केरल के गुरुवायर स्थान में कृष्ण की पूजा में लीन था और सहसा उसका गठिया का रोग आश्चर्यजनक रूप से अपने आप ठीक हो गया । नारायणीयम् श्रीकृष्ण की स्तुति के रूप में है । इसमें भागवतपुराण का संक्षेप है। इसमें १०३६ पद्य हैं। वे १२ स्कन्धों में बँटे हुए हैं । यह ग्रन्थ मालाबार में बड़े आदर की दृष्टि से देखा जाता है भागवत के तुल्य यह भी दैनिक पारायण के कार्य में प्राता है ।।
मधुसूदन सरस्वती (१६०० ई० के लगभग) ने प्रानन्दमन्दाकिनी नामक गीतिकाव्य लिखा है। इसमें श्रीकृष्ण का नखशिख वर्णन है। कृष्ण चैतन्य के शिष्य रूपगोस्वामी ने कई ग्रन्थ लिखे हैं । उसके गीतिकाव्यों में गन्धरप्रार्थनाष्टक और मुकुन्दमुक्तावली अधिक प्रसिद्ध हैं। जगन्नाथ पण्डित बादशाह शाहजहाँ का आश्रित कवि था । उसका समय १५६०-१६६५ ई० है । उसने पाँच गीतिकाव्य लिखे हैं--सुधालहरी, अमतलहरी, लक्ष्मीलहरी, करुणालहरी और गंगालहरी । सुधालहरी में सूर्य की स्तुति में ३० पद्य है। अमृतलहरी में यमुना नदी की स्तुति में १० पद्य हैं । लक्ष्मीलहरी में देवो लक्ष्मी की स्तुति में ४१ पद्य हैं । करुणालहरी का दूसरा नाम विष्णुलहरी