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संस्कृत साहित्य का इतिहास
भूमिशायी निराहारः शीतवातातपक्षतः ।
मुनिव्रतोऽपि नरकक्लेशमश्नाति सेवकः ।। समयमातृका में आठ अध्याय हैं । इसमें वेश्याओं के प्रपंचों का वर्णन है । कलाविलास में १० अध्याय हैं। इसमें जनता के अपनाये गये आजीविका के विभिन्न साधनों का वर्णन है । इसमें जनता के एक विभाग के द्वारा प्रयोग किए जाने वाले छल-प्रपंचों और धूतताओं का विस्तृत वर्णन किया गया है । दर्पदलन में सात अध्याय हैं । इस में वर्णन किया गया है कि दर्प किसी भी रूप में क्यों न हो, उसका निरादर करना चाहिए और इसके समर्थन में कथाएँ भी दी हैं । देखिए :
कुलं वित्तं श्रुतं रूपं शौर्यं दानं तपस्तथा ।
प्राधान्येन मनुष्याणां सप्तैते मदहेतवः ।। ___ जैन लेखक हेमचन्द्र (१०८८-११७२ ई०) ने योगशास्त्र लिखा है । इसमें जैनों के कर्तव्यों का तथा जैन साधुओं के द्वारा अपनाये जाने वाले कठोर नियमों का वर्णन किया गया है । सोमपालविलास के लेखक जल्हण (११५० ई०) ने मुग्धोपदेश ग्रन्थ लिखा है । इसमें उसने वेश्याओं के छल-प्रपंचों से बचने की शिक्षा दी है । शिल्हण (१२०५ ई०) ने शान्तिशतक लिखा है । सदुक्ति कर्णामृत (१२०५ ई०) में उसके इस ग्रन्थ का उद्धरण दिया गया है । यह भर्तृहरि के नीतिशतक और वैराग्यशतक के अनुकरण पर लिखा गया है । इसमें लेखक ने मानसिक शान्ति की प्राप्ति पर विशेष बल दिया है और उल्लेख किया है कि प्रत्येक व्यक्ति इसका अभ्यास करे । सोमप्रभ ने १२७६ ई० में शृंगारवैराग्यतरंगिणी लिखा है। इसमें स्त्रियों के संसर्ग से हानियाँ और वैराग्य के लाभों का वर्णन है।
वेदान्तदेशिक (१२६८-१३६६ ई.) ने सुभाषितनीवी ग्रन्थ लिखा है । इसमें १४५ सुभाषित श्लोकों का संग्रह है । ये श्लोक १२ पद्धतियों (अध्यायों) में बँटे हुए हैं । यह भर्तृहरि के नीतिशतक के अनुकरण पर लिखा गया है । उसने एक दूसरा काव्य वैराग्यपंचक लिखा है । इसमें उसने वैराग्य का वर्णन