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संस्कृत साहित्य का इतिहास
मन्दाक्रान्ता के अतिरिक्त अन्य छन्दों में भी बने हैं, जैसे विनयप्रभ (१३०० ई० से पूर्व) का चन्द्रदूत मालिनी छन्द में लिखा गया है, विष्णुदास (समय अज्ञात) का मनोदूत वसन्ततिलका छन्द में है और रामाराम (समय अज्ञात) का मनोदूत शिखरिणी छन्द में है ।
घटकर्पर ने घटकपरकाव्य नामक गीतिकाव्य २२ श्लोकों में लिखा है । इसमें उसने वर्णन किया है कि एक नवयुवती पत्नी मेघ के द्वारा अपने पति को प्रणय-सन्देश भेजती है । यह काव्य यमक अलंकार से परिपूर्ण है । इस काव्य के अन्तिम श्लोक में कवि ने प्रतिज्ञा की है कि जो कवि इससे उत्तम श्लोक बना देगा, उसके लिए वह घड़े के कर्पर (टुकड़े) में पानी भर कर लाएगा । अतः उसका नाम घटकर्पर पड़ा और उसके काव्य का भी नाम उसके नाम पर ही पड़ा। नवरत्नों में उसका नाम है, इसके अतिरिक्त उसके विषय में कोई परिचय प्राप्त नहीं होता है । इसके टीकाकार अभिनवगुप्त (१००० ई.) ने इस गीतिकाव्य को कालिदास की रचना मानी है।
दूतकाव्यों के अतिरिक्त गीतिकाव्यों का और कोई निश्चित रूप नहीं है । ऋतुसंहार गीतिकाव्य है । इसमें १४४ श्लोक हैं । इसमें ६ सर्गों में वर्ष की ६ ऋतुओं का वर्णन है। इसके लेखक के विषय में विद्वानों में मतभेद है । भारतीय विद्वान् यह स्वीकार करते हैं कि इसका रचयिता कालिदास कहा जाता है, परन्तु वे इसे कालिदास की रचना नहीं मानते हैं। उनका कथन है कि उच्चकोटि के टीकाकारों ने कालिदास के अन्य ग्रन्थों की टीका की है, परन्तु उन्होंने इसकी टीका नहीं की है । साहित्यशास्त्रिों ने इसकी एक भी पंक्ति उदाहरण के रूप में उद्धृत नहीं की है । अतः यह कालिदास की रचना नहीं है । पाश्चात्य विद्वान् इसे कालिदास की रचना मानते हैं। उपर्युक्त आपत्तियों का वे उत्तर देते हैं कि टीकाकारों ने इसकी टीका इसलिए नहीं की, क्योंकि यह कालिदास के अन्य ग्रन्थों से अपेक्षाकृत सरल है, अतः उन्होंने
१. अभिनवगुप्त - A historical and philosophical study by K.C. Pandey. पष्ठ ६५।