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गीति-काव्य
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मेघदूत के अनुकरण पर पवनदूत नामक काव्य लिखा है । इसमें उसने वर्णन किया है कि एक गन्धर्व कन्या ने कवि के आश्रयदाता राजा लक्ष्मणसेन के पास पवन के द्वारा अपना प्रणय सन्देश भेजा है । वेदान्तदेशिक (१२६८ १३६९ ई० ) ने मेघदूत के अनुकरण पर हंससन्देश नामक काव्य लिखा है । उसने वर्णन किया है कि जब हनुमान ने सीता का समाचार लाकर दिया तब राम ने हंस के द्वारा लंका में सीता को समाचार भेजा । दूत के रूप में हंस को भेजने का भाव कवि को संभवतः नल-दमयन्ती की कथा में हंस की सेवा से प्राप्त हुआ है । प्रायः प्रत्येक पद पर कालिदास का प्रभाव दिखाई देता है । इस काव्य में प्रेम के भाव के साथ ही भक्ति का भाव भी सम्मिलित है । कवि ने भक्तिभाव के महत्त्व को बताने के लिए तामिल के तीर्थ-स्थानों का वर्णन किया है । इस गीतिकाव्य में ११० श्लोक हैं । इसमें कालिदास के मेघदूत का प्रशंसनीय रूप से अनुकरण किया गया है । एक तामिल प्रदेश का कवि उद्दण्ड ( १४०० ई० ) अपनी आजीविका के लिए मालाबार गया और वहाँ कालीकट के मोरिन का प्रश्रित कवि हो गया । उसने मेघदूत के अनुकरण पर कोकिलसन्देश नामक गीतिकाव्य लिखा है । इसमें प्रणय-सन्देश का वर्णन है । यह मेघदूत का सुन्दर अनुकरण है । वामनभट्ट बाण ( १४२० ई०) ने मेघदूत का पूर्ण अनुकरण करते हुए हंससन्देश काव्य लिखा है । कृष्ण चैतन्य के शिष्य रूपगोस्वामी ( १५०० ई० ) ने हंसदूत और उद्धवसन्देश नामक दो दूतकाव्य लिखे हैं । दोनों में भक्तिभाव पर विशेष बल दिया गया है । मैसूर के राम शास्त्री ने १९वीं शताब्दी में मेघप्रतिसन्देश नामक काव्य लिखा है । इसमें यक्ष की प्रेमिका ने यक्ष के सन्देश का प्रत्युत्तर मेघ के द्वारा भेजा है । इनके अतिरिक्त निम्नकोटि के बहुत गीतिकाव्य हैं । इनमें से कुछ केवल भक्ति भाव पर बल देने के लिए ही लिखे गए हैं । पूर्णसरस्वती ( परिचय अज्ञात) ने हंससन्देश नामक काव्य लिखा है । इसमें काँचो की एक भक्त स्त्री ने वृन्दावन-वासी कृष्ण को अपना सन्देश भेजा है । इनमें से कुछ में २०० से अधिक श्लोक हैं, जैसे विष्णुत्राता ( १६वीं शताब्दी ई० ) का कोकसन्देश और वासुदेव ( १७वीं शताब्दी ई० ) का भृङ्गसन्देश । कुछ गीतिकाव्य