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कालिदास के बाद के कवि
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था। उसने यादवराघवीय नामक काव्य ३० श्लोकों में लिखा है और उस पर स्वयं टीका की है । यह द्विसन्धान पद्धति पर लिखा गया काव्य है । लेखक अनुप्रास के प्रयोग में अत्यन्त निपुण है । उसने इसमें अनुप्रास के समावेश के कारण काव्य को अत्यन्त कठिन बना दिया है। ___ एक जैन कवि मेघविजयगणि ने १६७१ ई० में ६ सर्गों में सप्तसन्धान-महा काव्य नामक काव्य लिखा है। इसमें उसने वृषभनाथ, शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ, महावीरस्वामी, कृष्ण और बलदेव के जीवन-चरित का वर्णन किया है । इस काव्य के प्रत्येक श्लोक के सात अर्थ हैं । अतः प्रत्येक श्लोक में सातों व्यक्तियों के जीवन का वर्णन साथ ही साथ चलता है। यह काव्य धनंजय, कविराज आदि के द्विसन्धान काव्यों की पद्धति पर बनाया गया है। इस काव्य के अतिरिक्त उसने जैन मुनियों और जैन दर्शन के विषय में कई ग्रन्थ लिखे हैं। ___ एक जैन कवि देवविमलगणि ने १७ सर्गों में हीरसौभाग्य नामक काव्य लिखा है और उस पर स्वयं टीका की है। उसने इसमें हीरविजयसूरि का जीवनचरित वर्णन किया है। अकबर ने इन्हें जगद्गुरु की उपाधि दी थी। इसका रचनाकाल १७०० ई० के लगभग है।
रामभद्र दीक्षित ने ८ सर्गों में पतंजलिचरित नामक काव्य लिखा है । इसमें उसने वैयाकरण पतंजलि का जीवन-चरित वर्णन किया है । वह राम का कट्टर भक्त था । वह तंजोर के राजा शाहजी ( १६८४-१७११ ई० ) का आश्रित कवि था । अतः उसका समय १७०० ई० के लगभग मानना चाहिए ।
१८वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में हरदत्त सूरि ने द्विसन्धान पद्धति का राघवनैषधीय नामक काव्य लिखा है । इसमें दो सर्ग हैं। इसमें राम और नल का जीवन-चरित्र साथ ही साथ वर्णित है।
पूरे काव्य साहित्य को देखने से ज्ञात होता है कि इसका बहुत उन्नत रूप से विकास हुआ है । इसके विकास में तीन काल-विभाग दृष्टिगोचर होते हैं,