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संस्कृत साहित्य का इतिहास काव्य-लेखक हैं । इतिहास भी काव्य के रूप में लिखा गया है । इस विभाग के कल्हण और विल्हण आदि प्रमुख कवि हैं। प्राकृत का भी काव्य-साहित्य के लिए प्रयोग होने लगा। प्राकृत में लिखे गए काव्यों में प्रवरसेन का सेतुबन्ध मुख्य है।
उत्तरी भारतवर्ष कवियों का मुख्य केन्द्र रहा है । दक्षिणी भारत का महत्त्व आन्ध्रभृत्य, वलभी आदि राजवंशों के आश्रित कवियों के द्वारा हुआ है । गुजरात में दसवीं शताब्दी से लेकर लगभग तीन शताब्दी बाद तक असंख्य जैन कवि हुए हैं। इन कवियों का विशेष झुकाव महाभारत की कथाओं की ओर था । छठवीं शताब्दी तक दक्षिण में संस्कृत के कवि नहीं हुए थे । इसके पश्चात् पल्लव, चालुक्य, चेर, चोल, पाण्ड्य राजाओं तथा विजयनगर, तन्जौर और मदुरा के राजाओं ने संस्कृत कवियों को प्रोत्साहन दिया । मालाबार ने आठवीं शताब्दी से लेकर १६वीं शताब्दी तक असंख्य कवि उत्पन्न किए हैं । मालाबार, विजयनगर, तन्जौर, कांची और मदुरा में इस काल में हुए कवियों के कार्यों के विवरण के लिए एक स्वतन्त्र ग्रन्थ लिखे जाने की आवश्यकता है । अप्पय दीक्षित के प्रसिद्ध वंशजों ने तथा उसके परिवार से संबद्ध अन्य व्यक्तियों ने काव्य-साहित्य को बहुमूल्य देन दी है। इस काल की एक विशेषता यह भी है कि इस समय कवियित्रियाँ भी हुई हैं । अंग्रेजों के आगमन तक कवि राजाओं के आश्रित होकर प्रसिद्धि पाते रहे हैं । अंग्रेजों के शासन के प्रारम्भ होने के समय से राजा नष्ट होते गए और साहित्यिकों को प्रोत्साहन देने वाला कोई भी न रहा, अतः साहित्यिक कार्य धीरे-धीरे अवनत होते गए।