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कालिदास के बाद के कवि
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एक जैन मुनि कमकसेन वादिराज ( ६५० ई०) ने चार सर्गों में यशोधराचरित नामक काव्य लिखा है। इसमें एक जैन राजा यशोधरा के जीवनचरित का वर्णन किया गया है ।
हलायुध ने कविरहस्य नामक काव्य लिखा है । इसमें व्याकरण के धातुसम्बन्धी नियमों के उदाहरण दिये गये हैं । धातुओं के वर्तमान काल के रूप दिये गये हैं। लेखक ने इन धातुरूपों के द्वारा अपने आश्रयदाता कृष्ण की प्रशंसा की है । यह राजा कृष्ण राष्ट्रकूट राजा तृतीय (६४०-६५६ ई०) है । अतः हलायुध का समय दशम शताब्दी उत्तरार्ध समझना चाहिये। __पद्मगुप्त, जिसका दूसरा नाम परिमल या परिमलकालिदास है, ने १८ सर्गों में नवसाहसांकचरित नामक महाकाव्य लिखा है। इसका रचनाकाल (१००५ ई०) है। यह राजा मुंज (६७० ई०) और राजा भोज (१००५१०५४ ई०) का आश्रित कवि था । यह कालिदास का बहुत प्रशंसक था। इसने जो कुछ साहित्यिक रचना की है, वह कालिदास की रचना से बहुत मिलती हुई है । संभवतः इसीलिए इसका नाम परिमलकालिदास पड़ा है। इस काव्य में उसने अपने आश्रयदाता भोज का वर्णन किया है। भोज की उपाधि नवसाहसांक थी। इसमें उसने भोज की मृगया का वर्णन किया है और उसका नागवंश की राजकुमारी शशिप्रभा से विवाह का वर्णन भी किया है।
कश्मीर का क्षेमेन्द्र, जिसका दूसरा नाम व्यासदास है, अभिनवगुप्त ( १००० ई० ) का शिष्य था । इसको साहित्यिक रचना का काल ११वीं शताब्दी के मध्यकाल के लगभग मानना चाहिये। इसने साहित्य के कई विभागों पर कई ग्रन्थ लिखे हैं । इसने महाभारत का संक्षेप भारतमंजरी, रामायण का संक्षेप रामायणमंजरी और गुणाढय की पुस्तक बृहत्कथा का संक्षेप बृहत्कथामंजरी नाम से लिखा है । ये तीनों राचनाएँ पद्य में हैं । विष्णु के दस अवतार पर उसका काव्य दशावतारचरित है । बाण की कादम्बरी का पद्यानुवाद उसने पद्यकादम्बरी नाम से किया है। उसकी अन्य रचनाएँ नष्ट हो गई हैं । उसके औचित्यविचारचर्चा तथा अन्य ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि उसने शशिवंशमहा