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कालिदास के बाद के कवि
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मंख या मंखक ने २५ सर्गों में श्रीकण्ठचरित नामक काव्य लिखा है ।. इसमें शिव के द्वारा त्रिपुर - नाश का वर्णन है । इसमें महाकाव्य की बहुत-सी विशेषताएँ हैं । अन्तिम सर्ग में उसने कश्मीर के राजा जयसिंह (११२६११५० ई० ) के मन्त्री तथा अपने भाई लंक या अलंकार के साथ राजद्वार में निवास का वर्णन किया है । उसने राजशेखर, मुरारि आदि का उल्लेख प पूर्ववर्ती कवि के रूप में किया है । कल्हण, बिल्हण और जल्हण उसके समकालीन
। उसने अपने भाई अलंकार के आश्रित जिन कवियों का उल्लेख किया है, उनके विषय में कोई सूचना उपलब्ध नहीं होती है । मंख के चार भाई थे । सभी राज्य में उच्च पदों पर थे और सभी विद्वान् थे । कल्हण ने मंख को राज्य में मन्त्री के रूप में उल्लेख किया है । वह साहित्यशास्त्री रुय्यक का शिष्य था । उसका समय ११५० ई० के लगभग मानना चाहिए ।
कल्हण ने कश्मीर का इतिहास पद्य में राजतरंगिणी नाम से लिखा है। इसमें आठ अध्याय हैं । उसने यह ग्रन्थ ११४६ ई० में लिखना प्रारम्भ किया था । अतः उसका समय ११५० ई० के लगभग मानना चाहिए । उसका ग्रन्थ जयसिंह के राज्य के वर्णन के साथ समाप्त होता है । यह अलंकारों से अलंकृत एक उत्तम साहित्यिक ग्रन्थ है ।
जल्हण ने सोमपालविलास नामक काव्य लिखा है । इसमें राजा सोमपाल का इतिहास वर्णित है । सोमपाल राजपुरी का राजा था । ल्हण उस आश्रित कवि था । मंख ने उसका नामोल्लेख किया है । अतः उसका समय ११५० ई० के लगभग मानना चाहिए ।
वाग्भट्ट ने एक जैन सन्त नेमिनाथ की प्रशंसा में नेमिनिर्वाण नामक काव्य लिखा है । वाग्भट्ट ११५० ई० के लगभग जीवित था । इसी समय के लगभग सन्ध्याकरनन्दी ने अपने आश्रयदाता बंगाल के राजा रामपाल ( ११०४११३० ई० ) की प्रशंसा में रामपालचरित नामक काव्य लिखा है । इसमें राजा रामपाल का इतिहास वर्णित है । साथ ही राम की कथा भी वर्णित है । इस दृष्टि से यह द्विसन्धानकाव्य है ।