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संस्कृत साहित्य का इतिहास था, अतः रत्नाकर का समाकालीन था । इसमें वर्णन किया गया है कि किस प्रकार एक दक्षिण के राजा कप्पण ने श्रावस्ती के राजा प्रसेनजित् पर आक्रमण का प्रयत्न किया और किस प्रकार प्रसेनजित् से युद्ध किये बिना ही अन्त में वह बौद्ध हो जाता है । कप्पण की सेना के उत्तर की ओर प्रस्थान के वर्णन से लेखक को अवसर प्राप्त हुआ है कि वह सूर्योदय, सूर्यास्त और सैनिकों के मदिरापान आदि का वर्णन कर सके । इसका भाव बौद्धों के अवदानशतकों से लिया गया है । इस काव्य पर माघ और भारवि का प्रभाव दिखाई देता है ।
अभिनन्द या जिन्हें गौडाभिनन्द कहते हैं, प्रसिद्ध नैयायिक जयन्त भट्ट (८८० ई०) का पुत्र था। वह कादम्बरीकथासार नामक काव्य का लेखक है । इसमें ८ सर्ग हैं । यह बाणकृत कादम्बरी की संक्षिप्त कथा है। __ कश्मीर के शतानन्द के पुत्र अभिनन्द ने रामचरित नामक काव्य लिखा है। वह प्रथम अभिनन्द से सर्वथा भिन्न है। इसमें राम की कथा का वर्णन है । भोज (१००० ई०) और महिमभट्ट (१०२५ ई०) ने इसका नामोल्लेख किया है । इसका समय नवम शताब्दी का पूर्वार्ध हैं । इसने ३६ सर्ग लिखे हैं । इस काव्य की भाषा सरल और उच्चकोटि की है। यह अपूर्ण ग्रन्थ था । इसको दो पृथक् लेखकों ने चार-चार सर्ग लिखकर पूरा किया है। इन चार सर्गों के दोनों पाठ प्राप्त होते हैं।
एक जैन कवि धनंजय ने राघवपाण्डवीय काव्य लिखा है। इसमें उसने श्लेष का आश्रय लेकर राम और पाण्डवों की कथा साथ ही उन्हीं श्लोकों में लिखी है अर्थात् प्रत्येक श्लोक के दो अर्थ हैं, एक राम के पक्ष में और दूसरा पाण्डवों के पक्ष में। द्विसन्धान (अर्थात् एक साथ दो अर्थ के बोधक) पद्धति पर बाद में कई काव्य लिखे गए हैं । इस प्रकार के काव्यों के लेखक हैं--कविराज (१२०० ई०), रामचन्द्र (१५४२ ई०), चिदम्बर (१६०० ई०), वेंकटाध्वरी (१६५० ई०), मेघविजयगणि (१६७० ई०), हरदत्त सूरि (१७०० ई० से पूर्व) आदि । धनंजय का समय दशम शताब्दी का पूर्वार्ध है ।