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संस्कृत साहित्य का इतिहास जीवन व्यतीत करने के लिए किन साधनों को अपनावे, इन बातों का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। बाद के लेखकों पर इसका स्थायी प्रभाव पड़ा है। उन्होंने अपने ग्रन्थों में ऐसी घटनाएँ और वर्णन दिए हैं, जिससे कामसूत्र में लिखित वर्णनों के साथ समता प्राप्त हो । वस्तुतः ऐसे वर्णनों की प्रसंगानुसार आवश्यकता नहीं थी। कामसूत्र में सातवाहन या प्रान्ध्रभृत्य वंश के एक राजा का उल्लेख आया है । यह राजा अवश्य ही ईस्वी सन् के प्रारम्भ के समय रहा होगा । आन्ध्र वंश का राज्य लगभग.२१८ ई० के समाप्त हुआ है । वात्स्यायन का समय इसी काल के लगभग निश्चित किया जा सकता है । इस प्रकार यह प्रकट होता है कि यह साहित्यिक काल वस्तुतः अन्धकारमय नहीं रहा है । गुप्त राजाओं को संस्कृत का पुनरुद्धारक माना जाता है, परन्तु यह ज्ञात नहीं होता है कि उनके आश्रित कवियों के नाम क्यों नहीं उल्लिखित मिलते हैं।
इस अन्धकारमय काल की समाप्ति पर प्रथम कवि मेण्ठ या भर्तृ मेण्ठ आता है । इसका दूसरा नाम हस्तिपक है । यह कश्मीर के राजा मातृगुप्त (४३० ई० के लगभग) का आश्रित कवि था । इसका काव्य-ग्रन्थ हयग्रीववध नष्ट हो गया है। इस ग्रन्थ का ज्ञान साहित्यिक ग्रन्थों में इसके उद्धरणों से ही होता है।
वत्सभट्टि ने ४७२ ई० में एक प्रशस्ति लिखी है । यह मन्दसोर के पास एक स्तम्भ पर लिखी हुई है । लेखक ने यह प्रशस्ति उस स्थान के रेशमी वस्त्रों को बनाने वाले जुलाहों की ओर से लिखी है। प्रशस्ति गौड़ी रीति में लिखो गई है और इस पर मेघदूत तथा ऋतुसंहार का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। इसमें वसन्त और वर्षा ऋतु का विस्तृत वर्णन किया गया है। ___ प्रवरसेन ने सेतुबन्ध नामक काव्य प्राकृत में लिखा है। इस काव्य को रावणवध और दशमुखवध भी कहते हैं। इसमें १५ आश्वास (अध्याय) हैं। इसमें लेखक ने राम के लंका-गमन से लेकर अयोध्या में राज्याभिषेक तक की रामायण की कथा का वर्णन किया है । प्राश्वास ७, ८ पुल के निर्माण का