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कालिदास के बाद के कवि
११५ वर्णन करते हैं, ६ अाश्वास में सुवेल का वर्णन है तथा ११वाँ आश्वास रावण के प्रेम का। इस ग्रन्थ में लेखक ने यमक अलंकार के प्रयोग में अपनी कुशलता दिखाई है। कुछ अन्य आलोचकों का मत है कि प्रवरसेन कश्मीर का राजा था और कालिदास उसका आश्रित कवि था, उसने ही यह सेतुबन्ध लिखा है । यह कथन असंगत है, क्योंकि बाण, कालिदास और प्रवरसेन दोनों को जानता था । उसने कालिदास को सेतुबन्ध का कर्ता नहीं माना है। प्रवरसेन का समय चतुर्थ शताब्दी ई० मानना चाहिये । बाण और दण्डी ने इस सेतुबन्ध काव्य की प्रशंसा की है ।
कीतिः प्रवरसेनस्य प्रयाता कुमुदोज्ज्वला । सागरस्य परं पारं कपिसेनेव सेतुना ।।
--हर्षचरित प्रस्तावना १४ महाराष्ट्राश्रयां भाषां प्रकृष्टं प्राकृतं विदुः । सागरः सूक्तिरत्नानां सेतुबन्धादि यन्मयम् ।।
--काव्यादर्श ११३४ बुद्धघोष ने दस सर्गों का एक काव्य पद्यचूडामणि लिखा है । वह जन्म से ब्राह्मण था, परन्तु बाद में बौद्ध हो गया था। इसमें गौतमबुद्ध के जीवन का वर्णन है। इसमें बुद्ध के जीवन का जो वर्णन दिया गया है, वह अश्वघोष के वर्णन से कुछ अंशों में भिन्न है । इस पर कालिदास और अश्वघोष का बहुत प्रभाव पड़ा है। इसकी शैली सरल और उत्कृष्ट है । बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार वह ३८७ ई० में बुद्ध के त्रिपिटक की पाली भाषा में की गई आलोचनाओं को लाने के लिये लंका भेजा गया था। उसने बहुत से बौद्ध ग्रन्थों की प्रतिलिपि की है तथा बहुतों का अनुवाद किया है और उन पर टीका भी लिखी है। उसके एक ग्रन्थ का ४८८ ई० में चीनी भाषा में अनुवाद हुआ है । अतः उसका समय ४०० ई० के लगभग मानना चाहिये।
भीम, जिसको भीमक भी कहते हैं, ने २७ सर्गों का महाकाव्य रावणार्जुनीय या अर्जुनरावणीय लिखा है। इसमें रावण और कार्तवीर्य अर्जुन के