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काव्य-साहित्य
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पीड़ित देवता ब्रह्मा के पास रक्षार्थ गए । ब्रह्मा ने आदेश दिया कि वे शिव और पार्वती का विवाह करायें। उनका जो पुत्र होगा वह तारक राक्षस का नाश करेगा। कामदेव को यह कार्य दिया गया कि वह समाधिस्थ शिव के हृदय में पार्वती के प्रति प्रेम-भाव उत्पन्न करे । कामदेव ने अपना कार्य किया । समाधि-भंग से क्रुद्ध शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया। तदनन्तर शिव अन्तर्धान हो जाते हैं । पार्वती शिव की प्राप्ति के लिए तपस्या करती हैं । शिव ब्रह्मचारी के वेष में वहाँ जाते हैं और उसकी तपस्या की परीक्षा करते है। तत्पश्चात् उससे विवाह की प्रतिज्ञा करते हैं । सप्तर्षियों ने शिव और पार्वती का विवाह-सम्बन्ध निश्चित किया। विवाह-समारोह के पश्चात् अन्तिम सर्ग में कालिदास ने दोनों के दाम्पत्य-जीवन का वर्णन किया है। यह महाकाव्य इस सर्ग के पश्चात् समाप्त होता है । विद्वानों का विचार है कि कालिदास के समकालीन लोगों ने देवताओं के युगल के दाम्पत्य-जीवन के वर्णन की कट आलोचना की, प्रतः कालिदास ने अष्टम सर्ग से आगे रचना नहीं की। इन सर्गों से ही कुमारसंभव नाम की सार्थकता सिद्ध हो जाती है, क्योंकि इनमें शिव और पार्वती के विवाह का वर्णन आ गया है, जिससे कुमार की उत्पत्ति हई । कालिदास के पश्चात् किसी एक कवि ने ग्रन्थ के नाम को अपूर्ण देखकर कुमार की उत्पत्ति तथा तारक-विजय का वर्णन करके इसे पूर्ण करने का प्रयत्न किया है । उसने ६ सर्ग और बनाकर इसे १७ सर्ग का महाकाव्य बनाया है । इन नए ६ सर्गों में कुमार की उत्पत्ति और तारक की विजय का वर्णन है । कालिदास जिन वाक्यों का प्रयोग न करता, वे प्रयोग इस अंश में पाए जाते हैं । साहित्यशास्त्रियों ने इस अंश में से एक भी पंक्ति उद्धत नहीं की है । कालिदास की कृतियों के प्रसिद्ध टीकाकार मल्लिनाथ ने इन सर्गों की टीका नहीं की है। इससे ज्ञात होता है कि ये अन्तिम ६ सर्ग कालिदास के विरचित महीं हैं।
रघुवंश १६ सर्गों का महाकाव्य है। इसमें रघुवंशी राजाओं का जीवनबरिस वर्णित है । इसमें काव्य रूप में राजा दिलीप, रघु, प्रज, दशरथ, राम,