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संस्कृत साहित्य का इतिहास
व्यक्ति कुन्दमाला के लेखक का नाम धीरनाग मानते हैं । अतः इस नाटक के लेखक के विषय में निर्णय करने में कठिनाई उपस्थित होती है । इस नाटक के लेखक दिङ्नाग को कवि-प्रतिभा के आधार पर कालिदास का प्रतिद्वन्द्वी माना जाय तो उचित प्रतीत होता है । इस शब्द के आधार पर कोई निर्णय नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इसे व्यक्तिवाचक नहीं है । इस शब्द का श्लोक में वास्तविक अर्थ है -- दिग्गज ।
मानने का कोई प्रमाण
कुछ पाश्चात्त्य विद्वान् कालिदास के द्वारा प्रयुक्त 'जामित्र" शब्द के आधार पर उसका समय ५०० ई० के लगभग मानते हैं । उनका मन्तव्य है कि सर्वप्रथम ज्योतिष के यूनानी पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग आर्यभट्ट ( ५०० ई० ) ने किया है और यह जामित्र शब्द कालिदास ने आर्यभट्ट से लिया है । यह शब्द यूनानी शब्द डाएमेट्रन का ही परिवर्तित रूप है । यहाँ पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि अश्वघोष ( १०० ई० ) के काव्य में भी उन्हें इस प्रकार के यूनानी शब्दों के परिवर्तित रूप मिले हैं, परन्तु वे इस आधार पर उसका समय बाद का नहीं मानते । उसी प्रकार के शब्द कालिदास ने प्रयुक्त किए हैं, परन्तु वे कालिदास का समय ५०० ई० से पूर्व रखने को उद्यत नहीं हैं । इससे स्पष्ट है कि उनके निर्णय कितने पक्षपातपूर्ण हैं । इन शब्दों की उत्पत्ति और प्रयोग के विषय में यह स्मरण रखना उचित है कि बोधायन (५०० ई० पू० ) ने अपने गृह्यसूत्रों में इन शब्दों का प्रयोग किया है और इन शब्दों पर यूनानी शब्दों का कोई प्रभाव नहीं है । अतः कालिदास के समय के निर्धारण में उपर्युक्त युक्ति प्रसार ही है ।
पाश्चात्त्य आलोचकों ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि कालिदास विक्रमादित्य उपाधिधारी किसी गुप्त महाराजा का प्रश्रित कवि था । शिलालेखों से ज्ञात होता है कि वे विद्या के उन्नतिकर्ता थे । उनका मत है कि कुमारसंभव और विक्रमोर्वशीय में कुमार और विक्रम शब्द कुमारगुप्त और १. कुमारसम्भव सर्ग ७ - १ ।