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७. पछतावे सहित प्रतिक्रमण एक बार बीज पड़ जाए तो वह रूपक में आएगा ही। लेकिन उसके जाम होने से पहले, मरने से पहले कम ज्यादा या साफ हो सकता है। इसलिए दादाश्री विषयदोषवाले को रविवार को उपवास करके, पूरे दिन प्रतिक्रमण करके दोष को धोते रहने की आज्ञा देते थे, ताकि कम हो जाए!
विषय विकार संबंधित दोषों के सामायिक, प्रतिक्रमण कैसे करने हैं? सामायिक में बैठकर, अभी तक जो जो दोष हुए हैं, उन्हें देखना है, उनका प्रतिक्रमण करना है और भविष्य में गलती नहीं हो ऐसा निश्चय करना है!
सामायिक में बार-बार वही के वही दोष दिखते रहें तो क्या करना चाहिए? जब तक दोष दिखते रहें, तब तक प्रतिक्रमण करते रहना है। उसके लिए क्षमा माँगना, उसके लिए पश्चाताप करना, बहुत बार ऐसा करते रहने से विषय की गाँठ विलीन होती जाएगी। जो जो गाँठे विलय करनी हों, वे इस तरह विलय हो सकती हैं! यहाँ पर जो सामायिक होती हैं, उसमें गाँठें विलय होती हैं।
विषय में सुख बुद्धि किसे महसूस होती है? अहंकार को। बारबार वही की वही चीज़ दी जाए तो वापस उसी में से दुःख बुद्धि खड़ी होती है! इसलिए वह पुद्गल है, पूरण (चार्ज होना, भरना)-गलन है।
विषय का साइन्स क्या है? जिस तरह पिन लोहचुंबक की ओर आकर्षित होती है, उसी तरह भीतर विषय के परमाणुओं का आकर्षण सामनेवाले व्यक्ति के विषय के परमाणुओं के प्रति होता है। यह सिर्फ परमाणुओं का ही आकर्षण है और खुद तो इससे अलग, शुद्धात्मा ही है, यदि ऐसा लक्ष्य में रहे तो कुछ भी नहीं छू सकता। लेकिन एक्ज़ेक्ट ऐसी जागृति किसे रह सकती है?
विषय की गाँठ फूटे और उसमें एकाग्रता हो जाए, तो उसी को विषय कहा गया है। यदि एकाग्रता नहीं हो तो उसे विषय नहीं कहते। जिसकी यह गाँठ विलय हो गई, उसे फिर पिन और लोहचुंबक का संबंध
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