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पउमचरियं
[६२. २०न तहा विहोसण ! ममं वाहइ सीयाविओयदुक्ख पि । जह अकयत्येण तु मे, डज्झइ हिययं निरवसेसं ॥ २० ॥ सुग्गीवाई सुहडा, सबै जाहिन्ति निययनयराई । तुह पुण अहो विहीसण !, कयम देसं पवजिहिसि ॥ २१ ॥ पढम चिय उवयार, कुणन्ति इह उत्तमा नरा लोए । पच्छा जे मज्झिमया, अहमा उभएसु वि असत्ता ॥ २२ ॥ सुग्गीवय ! भामण्डल !, चियया मे रयह मा चिरावेह । जामि अहं परलोय, तुब्भे वि जहिच्छियं कुणह ॥२३॥ मरणे कयववसायं. पउमं दट्टण जम्बवो भणइ । धीरत्तर्ण पवजसु, मुञ्चसु सोगं इमं सामि ! ।। २४ ।। विज्जासत्थेण इमो, पहओ लच्छीहरो गओ मोहं । जीविहिइ तुज्झ भाया, सामिय ! नत्थिऽत्थ संदेहो ॥ २५ ॥ तम्हा किंचि उवाय, तूरन्ता कुणह रयणिसमयम्मि । लच्छोहरो निरुत्तं, मरइ पुणो उम्गए सूरे ॥ २६ ॥ तत्तो ते कइसुहडा, भीया तिण्णेव गोउरपुराई। सत्तेव य पायारा, कुणन्ति विजानिओगेणं ॥ २७॥ रह-वाय-तुरङ्गमेहिं, सहिओ नोहेहि बद्धकवएहिं । नीलो चावविहत्थो, पढमम्मि पइटिओ दारे ॥ २८ ॥ बीए नलो महप्पा, अहिडिओ दारुणो गयाहत्थो । तइए बिहीसणो वि य, तिसूलपाणी ठिओ सूरो ॥ २९ ॥ दारे चउत्थयम्मि उ, कुमुओ सन्नद्धबद्धतोणीरो । कुन्ते घेत्तूण ठिओ, तह य सुसेणो वि पञ्चमए ।। ३० ॥ घेत्तूण भिण्डिमालं, सुग्गीवो छट्टए ठिओ दारे । सत्तमए असिहत्थो, अहिट्टिओ जणयपुत्तो वि ॥ ३१ ॥ पुबदुवारम्मि ठिओ, सरहो सरहद्धओ रणपयण्डो । अह अङ्गओ कुमारो, अहिट्ठिओ गोउरे अवरे ॥ ३२ ॥ नामेण चन्दरस्सी, वालिसुओ कढिणदप्पमाहप्पो । रक्खइ उत्तरदारं, जो जिणइ नम पि सत्तेणं ॥ ३३ ॥ एवं जे केइ भडा, अन्ने बलसत्तिकित्तिसंपन्ना । सन्नद्धबद्धकवया, अहिट्ठिया दक्खिणदिसाए ॥ ३४ ॥
जाओ। (१६) हे विभीषण ! सीताके वियोगका दुःख मुझ उतना पीडेत नहीं करता जितना असफल होनेसे मेरा सारा हृदय जल रहा है। (२०) सुग्रीव आदि सब सुभट अपने-अपने नगरोंमें चले जाएँगे, पर तुम विभीषण ! किस देशमें जाओगे? (२१) इस लोकमें उत्तम पुरुष पहले ही उपचार करते हैं, जो मध्यम पुरुप होते हैं वे बादमें करते हैं, किन्तु अधम पुरुष तो दोनोंमें असमर्थ होते हैं । (२२) हे सुग्रीव ! हे भामण्डल ! तुम मेरे लिए चिता बनाओ, देर मत करो। मैं परलोकमें चला जाऊँगा। तुम भी यथेच्छ करो। (२३)
___इस तरह मृत्युके लिए कृत निश्चय रामको देखकर जाम्बवानने कहा कि हे स्वामी ! आप धीरज धारण करें और इस शोकको छोड़ें। (२४) विद्या-शस्त्रसे आहत यह लक्ष्मण बेहोश हो गया है। हे स्वामी! थापका भाई जीवित होगा, इसमें सन्देह नहीं है। (२५) इसलिए रातके समयमें फौरन ही कोई उपाय कीजिये अन्यथा सूर्यके उगनेपर लक्ष्मण अवश्य मर जायगा । (२६) तब भयभीत उन कपि-सुभटोंने विद्याके प्रभावसे नगरके तीन गोपुर और सात प्राकार बनाये। (२७) रथ, हाथी और घोड़े तथा कवच बाँधे हुए योद्धाओंके साथ नील हाथमें धनुष लेकर पहले दरवाजेपर स्थित हुआ। (२८) भयंकर और हाथीपर आरूढ़ महात्मा नल दूसरे दरवाजेपर तथा त्रिशूलपाणि वीर विभीषण तीसरे दरवाजेपर स्थित हुए। (२६) चौथे दरवाजेपर कवच पहना हुआ और तूणीर बाँधा हुआ कुमुद तथा पाँचवेंपर सुषेण भाला लेकर खड़ा रहा। (३०) भिन्दिपाल (शख विशेष) लेकर सुग्रीव छठे दरवाजेपर खड़ा रहा और सातवें दरवाजेपर तलवार हाथमें धारण करके जनकपुत्र भामण्डल आ डटा । (३१) सिंहकी ध्वजावाला तथा युद्ध करने में प्रचण्ड ऐसा शरभ पूर्व द्वारपर स्थित हुआ और अंगदकुमार पश्चिम-गोपुरमें अधिष्ठित हुआ। (३२) जो अपने सामर्थ्यसे यमको भी जीत सकता है ऐसा कठोर दर्पके माहात्म्यवाला चन्द्ररश्मि नामका बालिपुत्र उत्तर द्वारकी रक्षा करने लगा। (३३) इसी प्रकार बल, शक्ति एवं कीर्तिसे सम्पन्न जो कोई दूसरे सुभट थे वे तैयार होकर और कवच बाँधकर दक्षिण दिशामें आ डटे । (३४) इस प्रकार खेचर राजाओंने सारा सन्निवेश
१. कं सरणं तं पव०-मु.।
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