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पडमो संधि लगते हैं मानो नाच रहे हों। जहाँ खुले हुए मुखोंके दादिम ऐसे लगते हैं जैसे वानरोंके मुख हो । जहाँ केतकीके पराग-रजसे धूसरित मधुकरोंकी पंक्तियाँ सुन्दर जान पड़ती हैं। जहाँ द्राक्षाओंके मण्डप झरते रहते हैं, पथिक जिनसे रसरूपी जलका पान करते हैं॥१-८ ___ घता-उसमें धन और सोनेसे समृद्ध राजगृह नामका नगर है, जो ऐसा लगता है जैसे नवयौवना पृथ्वीके शिरपर चूड़ामणि बाँध दिया गया हो ॥९॥
[५] चार गोपुर और चार परकोटोंसे युक्त तथा मोतियोंके सफेद दांतोंवाला वह नगर ऐसा जान पड़ता है जैसे हंस रहा हो । हवामें पढ़ती हुई बजारूपी हथेलियोस ऐसा लगता है जैसे नाच रहा है, गिरते हुए आकाशमार्गको जैसे धारण कर रहा हो ? जिनके शिखरोंमें त्रिशल लगे हुए हैं, ऐसे मन्दिरों तथा कबूतरोंके शब्दोंसे गम्भीर जो ऐसा लगवा है जैसे कल-कल कर रहा हो। मदविहल हाथियोंसे ऐसा लगता है जैसे घूम रहा हो, चंचल घोड़ोंसे ऐसा लगता है जैसे उड़ रहा हो, चन्द्रकान्त मणिको जलधाराओंसे ऐसा लगता है जैसे नहा रहा हो, हार और मेखलाओंसे परिपूर्ण ऐसा लगता है जैसे प्रणाम कर रहा हो, नूपुरकी श्रृंखलाओंसे ऐसा लगता है जैसे स्खलित हो रहा हो, कुंडलोंके जोड़ोंसे ऐसा लगता है जैसे चमक रहा हो । सार्वजनिक उत्सवोंसे ऐसा लगता है कि जैसे किलकारियाँ भर रहा हो, मृदंग और भेरीके शब्दोंसे ऐसा लगता है जैसे गर्जन कर रहा हो, पाल यीणाओंकी मूर्च्छनाओंसे ऐसा लगता है जैसे गा रहा है, धान्य और धनसे ऐसा लगता है जैसे 'नगर प्रमुख' हो॥१-दा
घत्ता-गिरे हुए पानके पत्तों, सुपाड़ियों तथा लोगोंके पैरोंके अग्रभागसे कुषले गये चूनेके समूहसे उसकी धरती लाल
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