Book Title: Paumchariu Part 1
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 344
________________ ३१२ पउम चरिउ जक्खहाँ रक्तही रक्खड़ों सहिय । णं तो पाणणेण गहिय ॥ ॥ ॥ संणिसुर्णेवि गन्धब्बाद्दिछ । मणिचूड रथणचूड दइउ | अट्ठावड सावज होवि धिट । रखड पर उपचार -मह ॥ ७ ॥ पाणणु जेथु तेधु अड् ||८|| हरि पाराउर तेण क्रिउ ॥५९॥ घत ताहि गया लोअरवि अजण वस तमाल मिलिय । 'इहु अट्ठावड होन्तु ण वि ता वहह (?) आसि माए गिलिय ||१०॥ [] एम वोल किर विहि मि परोप्यरु जायें हिं । गीज गेज गर्ने मणहरु ताहिं ॥ १ ॥ संणिणे वि परिक्षोसियकिय मर्णे (?) | 'पण्णु को वि सुद्दि बसवणं ॥ २ असमाहि-मरणु णासियत । अणुवि गन्धम्वु पयासिड' ॥३॥ अवशेष्यरु एम वतिय हुँ । पयिक-गुहहिं अच्छति ॥४॥ माहवमास हो वहुमिए । स्थणि पश्चिम-पहरवें थिएँ ||५|| हरू -कमल- कुलिस-झल- कमळ- जुठ ॥ ६॥ सुह लक्खणु अवक्वण- रहिउ ||७|| पडिसूरें सूर-सम-प्पण || ८ || ओभरें षि विमाणहीँ पुष्क्रिम ||९|| सवर्णे उप्पण्णु सुउ । स- कुम्भ-सह-सहिउ । ताणतरे पर वह जिम्मण हे जस्तै के वि यियि । 'कहिँ जायज कई बिउ कसुर एवड्डदुड घत्ता कहीँ धोयल कहीं कुछउसियउ ! पण अच्छी जे अन्तिय ॥१०॥

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