Book Title: Paumchariu Part 1
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 356
________________ पसमचरिड जिह उमय-पुरहुँ परिपलियर। बिह वणे ममियड एलियर || जिरिवरेण सवसन किड। अट्ठावरण जिह उपसमिज ॥६॥ जिह कर पुत्तु भूसणु इसा! मिह जो जिसन पनि सिल ॥७॥ सिरिसाइलु नाउँ हणुवन्तु जिह। विस असेसु नि कहिउ तिह ॥ तपय पुणेवि समुट्टियउ। पटिरे पिय-गवरहों णियउ ॥९॥ घसा मिकिट पहाणु अक्षणहाँ पणुस-दीवे परिठियई देषिण मि णिय-कहर कहताई। मिरु र सई भुञ्जन्ताई ॥१०॥ [२०. वीसमो संधि परम्सन पावणि मर-चूडामणि जाव जुवाण-मा चढाइ । तहिं अपसरे रावणु सुर-संताव रणउहें वरुणही अभिमबह । [] इनागमण कोउ सबजाई। सर सरह दसासु सच्याइ ॥३॥ परिवेडिउ रयणियर-सहासें हि। पेसिय सासणहर घठपास हि ॥२॥ लसण-सुग्गीव-रिन्दहुँ। जल-णीलहुँ माहिन्द-महिन्दहुँ ॥३॥ पाहायहाँ परिदिणयर-पवणहुँ । प्राणेंवि समरु परुण-दहवयणहुँ ॥४॥ मारह सयण-जगालाउरें हिं। पद पवणाय-पटिसूर हि ॥५॥ 'वहस परिपालहि मेइणि । माणहिराप-समिजिह कामिणि भम्हेंहि शवण-आण करेगी। पर-वक-जय-सिरि-बहुम हरेवी' । संणिमुणे वि अग्निगरि-सौदामणि। चक्षण पवेप्पिणु पमणइ पाषणि॥

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