Book Title: Paumchariu Part 1
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 358
________________ २२९ पउमचरित घत्ता 'मि तुम्हें विजाहाँ अप्पुणु मुभाहों मई हशुषन्ने हुन्तऍण । पावम्ति वसुन्धर चम्द-दिवायर कि किरणो सन्तपण' ॥९॥ [२] मणह समीरणु 'जयसिरि-लाहउ । अन्जु घि पुस ण पेक्विन माहउ ॥३॥ अज्जु वि चालु केम तु जुल्महि । अन्जु वि यूह भेउ णद बुभमहि' १२॥ सं णिसुणेवि कुविउ पवणचह। 'वालु कुम्मिकि विवि ण माइ॥३॥ वाल सीह किं करि ण विहादइ । कि वालग्गि दहा महारइ ॥ वालयन्दु कि जणं ण मुणिज्जह । वालु भारउ किं ॥ थुणिज्जा ॥4 बाल भुषामु काई ण खाइ। बाल रवि समोहु किं UR' ॥३॥ एम मणेवि पहम्मणि-राणड । बडाणपरिह दिण्णु पयाण ॥७॥ दहि-अखिय-जल-साल-कलसहि । पढ-कहा-बम्वि-विष्प-णिग्योसहि ॥६॥ धत्ता हणुवस्तु स-साहणु परिमोसिय-मशु एम्त दिख सकेसरण । कण-दिषसें बलम्वउ किरण-फुरन्त तरुण-तरणि प ससहरण ॥५॥ [१] दूरहों ऑकोक्क-मपावणु। सिक जावें वि जोक्कारिज रावणु ॥१॥ वेण वि साहसेण सब्वानित । पम्तउ सामीरणि आलिखित ॥॥ सुम् वि उचोलिहि वहसारिख । वारवार पुणु साहुपकारिउ ॥३॥ 'धण्णउ पवणु जासु नहुँ गन्दणु । भरहु ओम पुरपवहाँ पदणु' | एम कुसल-पिय-महुरालार्वेदि। करण-कश्मीदाम-कलावहिं ॥५॥ सं हणुवन्त-कुमार पपुषि। वरुणही उपरि गउ गङगाविस

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