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पीसमो संधि घसा-"मुझ हनुमान्के जीवित होते हुए तुम विरुद्धोंसे स्वयं लड़ोगे, क्या सूर्य-चन्द्रमा किरणसमूहके होते हुए धरती पर पाते हैं १" ॥५॥
[२] तब पवनंजय कहता है, “हे पुत्र, अभी तक तुमने न तो युद्ध देखा है और न विजयश्रीका लाभ । अभी भी तुम बालककी सरह हो, तुम क्या लड़ोग अभी भी तुम युद्धव्यूह नहीं जानते।" यह सुनकर हनुमान् क्रुद्ध हो गया, "क्या गजशिशु पेड़को नहीं नष्ट कर सकता, शिशु सिंह क्या हाथीको विघटित नहीं करता, क्या शिशु आग अटवीको नहीं जलाती, क्या बालचन्द्रको लोग सम्मान नहीं देते, क्या बालक योद्धाकी प्रशंसा नहीं की जाती, क्या बाल सर्प काटता नहीं है, बाल रषिके सामने क्या तमका समूह ठहर सकता है " यह कहकर हनुमान्ने लंकाके लिए कूच किया । दही, अझस, जल, मंगल-कलश, नट, कवि-वृन्द और ब्राह्मणोंके निर्घोषके साथ ॥१-८॥
पत्ता-सन्तुष्ट मन हनुमानको अपनी सेनाके साथ रावणने इस प्रकार देखा मानो पूर्णिमाके दिन चन्द्रमाने आलोकित किरणोंसे भास्वर तरुण-तरणिको देखा हो ||२||
[३] जो त्रिलोक भयंकर है, ऐसे रावणको उसने दूरसे ही सिरसे प्रणाम किया। उसने भी आते हुए हनुमानका हर्ष और पूरे अंगोंसे आलिंगन किया 1 चूमकर अपनी गोद में बैठाया,
और बार-बार उसे साधुवाद दिया, “पवनंजय धन्य है जिसके तुम पुत्र हो, ऋषभनाथके पुत्र भरतके समान ।" इस प्रकार कुशलप्रिय और मधुर आलापों, कंकण और स्वर्ण डोरके समूहसे उसका सम्मान कर रावण गरजता हुआ वरुणपर चढ़ाई करने के लिए गया। अपना कुच बन्द कर शरद्के मेषकुलके