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बीसमो संधि राजीव, धनुर्धर, वेलानल, कल्लोल, वसुन्धर, तोचावलि, तरंग, बगलामुह, वेलन्धर, सुबेल, बेलामुख, सन्म्या गलगजिन: सन्ध्यावलि, ज्वालामुख, जलोह, ज्वालावलि और जलकेताइ आदि अनेक वरुण पुत्र दौड़े, हर्षके साथ युद्धभूमिपर पहुंचे। अबतक गरुड़-व्यूह बनाकर वे स्थित हुए कि तबतक शत्रुओंने अपना चाप-ज्यूह बना लिया ॥१-९॥
पत्ता--एक दूसरेसे बलिष्ठ, ईर्ष्या से भरे हुए दूरसे ही कोलाहल करते हुए और पुलकित, रावण और वरुणके दल आपस में लड़ने लगे ॥१०॥
[६] कवच पहने और खड्ग उठाये हुए रावण और वरुणके दल लड़ने लगे। जिनके शरीर गजघटाके सघन प्रस्वेदसे युक्त थे, उनके कर्णरूपी चमरोंसे जो दक्षिणपवनका आनन्द ले रहे थे, इन्द्रनीलरूपी निझासे जिनका प्रसार रोक दिया गया था, सूर्यकान्त मणियोंसे जिन्हें दिनको दुबारा अवसर दिया गया, उखाड़ दिये हैं महागजोंके कुम्भस्थल जिन्होंने, तलवारसे निकाल लिये हैं मुक्तासमूह, जिन्होंने, जो एक दूसरेपर तलवार पला रहे हैं, दसों दिशापयों में रक्तकी धाराएँ बह रही हैं जिसमें, गजमदके जलमें धोये जा रहे हैं घाव जिसमें, नचाये जा रहे हैं धड़ जिसमें । तबतक यरुणके पुत्रोंने दशाननको इस प्रकार घेर लिया, जिस प्रकार मेध' चन्द्रमाको घेर लेते हैं, जैसे सिंह हाथी घेर लेते हैं, जैसे जीव दुष्कर्मों के समूहसे पेर लिया जाता है ॥१-८॥ __घत्ता--अकेला भुवनभयंकर रावण अनन्त शत्रुसेनामें उसी प्रकार घूमता है, जिस प्रकार समुद्रमन्थनके समय तद और गुफाओं के साथ मन्दराचल ||९||