Book Title: Paumchariu Part 1
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 362
________________ 22 परामचरित योपालि-तर-बगलामुह । वेलम्बर सुवेल बेकामुह || २ || जाहा मुह म छोड़ बाकाहि ॥७॥ सम्झा - गलगजिय-सम्झाव । जळकता अणेय पधाय । सरस भाव-भूमि पराइ ॥ ८॥ विरवि-हु थिय जावेंहि । वह्निहिं चाव-बू हुकिज तायें हिं ॥९॥ छत्ता अवरोप्परु वरिय हैं मच्छर भरियई दूरुग्वोसिय-कयल हूँ । रोम-बिसह रणें अमिट्ट वे वि बरुण रावण-वक हूँ ॥१०॥ [+] रावण वरुण-बलहूं आला ॥१॥ कण्ण-मर-मलयाणिक-पराई ॥ ॥ सूरकन्ति दिण-लङ्काबसरहूँ ॥३॥ कबूदिय-असि मुसाहरु नियर हूँ ॥४॥ दस- दिसिह धाइय कौलारू हूँ ॥५॥ णखाविय - कवन्ध-संघाई ॥६॥ चेविड चन्दु जेम जोमुरों हि ॥ ७ ॥ जीउ प्रेम तुकम्म समूहहिं ॥ ८॥ घत्ता एक्स्कट रावणु भुवण-मयाबणु भ्रमइ अणऍ बरि-वलें । स- णियम्बु सकन्दर णाएँ महीहरु मस्थिस्वन्तएँ उर्षाहि वले ॥१॥ किय भङ्ग उल्कालिय-खगई। राय घडण -पासेश्य-गत | इन्दणीक-निखि-जासिय-पसरहूँ । उक्य-करिकुम्मस्थळ - सिहर हूँ । पम्मुके मेक करवाल हूँ। राय-मब-ज-पाय- घायई । साव दाणण वरण पुसेंहिं । केसरि प्रेम महागय-जू हहिं ।

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