Book Title: Paumchariu Part 1
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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पदमचरित
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साम वरुणु राम्रणव मिहि । विहि-सुअ-सारण-मय-सारिखें हि ॥१॥
यह वाण माहि सार-सर- रम्भ-विससेणेंहिं ॥ ३ ॥ जव जल-पीलें हिं सोण्टीरें हिं ॥४॥ तेण वि सरवर धोरणि पेसेंवि ॥५॥ तास दसाणु वरुण कुमारे हिं ॥ ३ ॥ बहु साहु महाधड खनि ॥ ॥ सरहसेण हतकुमारें ||८||
हस्थ-पथ - विही
अङ्ग सुग्गी- सुसेणेंहि । कुम्मयण्णखर दूसण-पोरेहिं । बेहि खत धम्मु परिसेवि । खेटिय अणसुहव जळधारहिं । आमावि सम्वहिं समकण्डि । सं णिचि जिय-कुल-मारें ।
धता
रणउहें पसरि बहुओं राबणु लम्बेद्वाविष्ट । श्रविषाणिय-काएं णं दुष्वाएं रवि मेहई मेल्लापि ॥ ९॥
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संवेद्वेषि विज्या कह ले ॥ १ ॥
ताम पधाइज वरणु स सन्दणु ॥१२॥ कहिं सञ्चरहि सण्ड भहवा जर ५३॥ सोहु व सीहाँ बेदाविउ || ४ || । मागपाल कङ्ग- व्यहरण ॥ ५॥ अन्तर थिङ रण भूमि पसाई वि ॥ ५ ॥ । महँ कुविएण ण देय दाणव || सहस- किरण णककुम्वर-रुकहुँ ||८॥ घत्ता
सत्तु सतु पढिले ।
सयन छेडू ण के जाम मरुणन्दणु । 'भरें खुद पाव वलु वाणर । à मिणेपिणु बलिउड विणि विकिरमिति दणु-दारण ताम दसाणणुरहरु नार्हसि । भरें वलु वलु हयास भरें माणत्र 'जं कि जम- मिच भ्रणयक हैं।
अवरहु मि सुरिन्दहुँ णरवर-विन्द परिहव तुमच फळ विधि
दिई आसि जाएँ जाएँ । सु विदेभिताई हूँ ॥१॥

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