Book Title: Paumchariu Part 1
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 365
________________ वीसमो संधि [७] तबतक वरुणको रावणके अनुचरोंने घेर लिया, दोनों सुतसार और व्यमारी और विभीषणाने, महाकाय इन्द्रजीत और धनवाहनने, अंग-अंगद - सुप्रीव और सुषेणने, तारन्तरंग-रम्भ और वृषभसेनने, कुम्भकर्ण और खरदूषण वीरोंने, जाम्बवान् नल, नील और शौण्डीरने । इन्होंने घेर लिये क्षात्रधर्मको ताक पर रखकर। उसने भी सरबरोंकी बौछार की। तबतक दशानन वरुणकुमारोंके साथ उसी प्रकार क्रीड़ा करने लगा जैसे बैल जलधाराओंसे । आयाम करके उसे सबने घेर लिया, और उसका रथ, कवच और महाध्वज खण्डित कर दिया । यह देखकर अपने कुलका नेतृत्व करनेवाले हनुमान् कुमारने हर्ष के साथ ||१८|| पत्ता - युद्धमुखमें प्रवेश कर, दुश्मनोंको खदेड़कर, उसी प्रकार रावणको मुक्त किया, जिस प्रकार अविज्ञात मार्ग दुर्वात मेघोंसे रविको मुक्त करता है ||२५|| [८] शत्रुसे प्रतिकूल होनेपर सभी शत्रुओंको हनुमानने विद्याकी पूँछसे घेर लिया, और जबतक वह पकड़े या न पकड़े तबतक वरुण अपने रथके साथ दौड़ा। वह बोला, "अरे खल क्षुद्र पापी बानर, मुड़, हे तर या साँड़, कहाँ जाता है ?" यह सुनकर वानर मुड़ा जैसे सिंह सिंहपर क्रुद्ध होकर मुड़ता है। दनुका दारण करनेवाले वे दोनों आपस में भिड़ते हैं, नागपाश और पूँछके प्रहरण लिये हुए । तब दशानन रथ हाँककर, रणभूमि में पहुँचकर बीच में स्थित हो गया । वह बोला, "अरे हताश मनुष्यो, मुड़-मुड़ो, मेरे क्रुद्ध होनेपर न देव रहते हैं और न दानव । यम, चन्द्र और धनद अर्कका मैंने जो किया, सहस्र-किरण, नलकूबर और इन्द्रका जो किया ॥१-८|| घत्ता - और भी सुरवृन्द और नरविन्दोंको तुमने जो पराभव के बुरे बुरे फल दिये हैं, वे मैं तुझे दूँगा " ||९||

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