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पीसमो संधि
३२९ समान सेना बेलन्धर समर ठहर गाणी! की पर सम्मक खर-दूषण राजा, कहीपर हनुमान् , नल-नील प्रमुख, कहींपर कुमुद, सुनीष, अंग और अंगद, मानो मत्त महागजोंके समूह ही ठहरे हों ॥१-५|| ___धत्ता-कोलाहल करता हुआ और समूहोंमें ठहरा हुआ निशाचर-बल ऐसा मालूम हो रहा था, मानो दशाननकी विजयका जनक पुण्यपुंज ही समूहों में ठहरा हो ॥१०॥
[४] इसी अवधिमें निष्करुण वरुणसे, उसके घरपुरुषोंने कहा, "हे देव-देव, अचल क्यों बैठे हो, शत्रुसेना बेलन्धरपर ठहरी हुई है।" गुप्तचरोंकी बात सुनकर राजा वरुणको हटाते हुए एकान्तमें मन्त्रियोंने उसके कानमें कहा-"रावणकी आशा मान लीजिए, उसने धनदको युद्धके प्रांगणमें कुचला, त्रिजगभूषण महागज वशमें किया, जिसने अष्टापद पहाड़ उठाया, राजा माहेश्वरपतिको पकड़ा, जिसने नलकूबरको अनविहीन कर दिया। चन्द्रमा, कुबेर, सूर्य और इन्द्रको हराया, उसके साथ कैसा युद्ध, और आज्ञा मान लेनेपर कैसा पराभव ?" ॥१-टा
धत्ता--यह सुनकर दुर्धर धनुर्धारी वरुण कोपकी ज्वालासे भड़क उठा, "कि जब मैंने खर और दूषण दोनोंको जीत लिया था, उस समय रावणने क्या कर लिया था" ॥९॥
[५] यह कहकर, भुवनमें यशका लोभी घरुण हर्षपूर्वक युद्धके लिए सनद्ध होने लगा। गजके ऊपर मकरासनपर आरूढ़, फड़क रहे है ओठ जिसके, और दारुण नागपाश शस्त्र हाथमें लिये हुए । रणभेरी बजा दी गयी, ध्वज उठा लिये गये, हाथियोंको अम्बारीसे सजा दिया गया, अश्वोंको कषप पहना दिये गये, रथ जोत दिये गये। वरुणके पुत्र निकल पड़े। पुण्डरीफ,