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पीसमो संधि निकाली गयीं, किस प्रकार अकेली वनमें घूमी, किस प्रकार सिंहने उपसर्ग किया और अष्टापदने उन्हें बचाया, किस प्रकार पृथ्वीका आभूषण पुत्र प्राप्त किया, किस प्रकार आकाशमें ल जाते हुए शिलापर गिर पड़ा और किस प्रकार उसका नाम पड़ा, यह सारा वृत्तान्त कह दिया। यह वचन सुनकर वह सठा, प्रतिसूर्य उसे अपने नगरमें ले गया ।।१-२॥
पत्ता--प्रभजन वहाँ अंजनासे मिला दोनों अपनी-अपनी कहानी कहते हुए हनुरुह द्वीपमें प्रतिष्ठित हो गये और स्वयं राज्यका उपभोग करने लगे ॥१०॥
बीसवीं सन्धि जबतक भट चूड़ामणि हनुमान बढ़कर युवक हुआ, तबतक सुरसन्तापक रावण वरुणसे भिड़ गया। - [१] दूतके आगमनसे उसका क्रोध बढ़ गया । स्वयं दशानन हर्षके साथ तैयारी करने लगा। वह हजारों निशाचरोंसे घिरा हुआ था, उसने चारों ओर शासनधर भेजे। खरदूषण-सुप्रीव राजाओंको, नल-नील और महेन्द्रनगरके महेन्द्रको । प्रह्लाद, प्रतिसूर्य और पवनंजयको। वरुण और रावणके समरकी बात जानकर, स्वजनकी विजयकी आशासे पूरित पषनंजय और प्रतिसूर्यने हनुमानसे कहा, "षत्स-वत्स, तुम धरतीका पालन करो और राजलक्ष्मीको कामिनीकी तरह मानो। हमें रावणकी आशाका पालन करना है और शत्रुसेनाकी विजयश्रीरूपी वधूका अपहरण करना है ।" यह सुनकर शत्रुरूपी पर्वतके लिए बिजली के समान हनुमान्ने चरणोंको प्रणाम कर कहा-॥१-८॥