Book Title: Paumchariu Part 1
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 354
________________ ३२१ पदमश्चरिड घत्ता लाम विधीरिय माउलेश 'मा माए विराट करि मणहों। सिवहाँ सासय-सिद्धि विह तिह पर वक्तवमि समीरणही' ||१ [ ७] पुणु पुणो वि धोरेपिणु भक्षणसुन्दरि । जिय-विमाणे आस्तु णराहिष-केसरि ॥१॥ गठ सेसई जेत्त केउमइ । अणु वि पाहायणराहिषट् ॥३॥ . गरघर-विन्दा असेसाई । मेलेथिणु गयो गयेसाई ॥१॥ संभूबरवाद स्काई। घर-उलई व याप्यहाँ चुक्काई 1911 पवणार जहि भारद विपद। सो कालमेहु वणे दिख गर ॥५॥ उदाइड उक्कर उन्वयशु । तण्डचिय-कण्णु तस्विर-गयणु ॥ ६॥ तं पाराउट्ठर करवि बनु । गज सहि में पशोपड़ भतुल-बलु ॥७॥ गणियारिड डोहय वसिकिया। णघ-सिमि-सप भमस व थियउ॥८॥ किकरहि गवेसन्तेहिं वर्ण । क्खिड वेलहले लया-मवणें ॥९॥ जोक्कारिउ विजाहर-सप हि। लिह जिणवा सुरहिं समागए 1ि. पत्ता मउशु म्एवि परिट्रियउ गर यह ण चल्ला माण-परु । जाय मन्ति मणे सम्बहु मि 'कटमउ किग्ण णिग्मविड णर' १७॥ [ ४] पुणु सिलोड बवणीय लिहिउ स-हस्यण । 'अक्षणाएं मुहगाप भरमि परमायण ॥१m जीवन्ति णिसुणमि पस जइ। तो वोलमि यह एत्तरिय गई ॥३॥ णिसुणेपि हणुरूहाणऍण । बजरिम वत्त परिजाणऍण ॥ सामरस-हास-सरिसाणणज। घिणि मि वसम्तमालाणउ ||॥

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