Book Title: Paumchariu Part 1
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 342
________________ पउमरिज पत्ता चलण पदेय्पिणु मुणिवरहों मझग विपणवह लहन्ति मुह । 'अण्ण-भवन्तरें काई मइँ किउ दुकिज जे अणुहमि दुहु ॥१०॥ [७] पु वसम्ममालाई सुतु 'गड सर । पट सन्चु फलु एयहाँ गम्भों केरउ' ॥ १॥ तं णिमुणे वि चिगम-राउ-मण । 'ऍउ मध्यहाँ दोसु ण संभयह ॥२॥ जा घोखछ 'होमह तणउ त। हु चरिम-दंड रणे लव-जद ॥३॥ पइँ पुम्ब-मवन्तरे सइँ करें । जिण-पहिम सवप्तिहँ मच्छरेण ॥४ परिचित्त पस सं राहु युद्ध । एवहिं पावेसहि सयल-सहु' ||५|| गज एम मणेपि अभियगई। साणन्सर हुक्कु भयाहिंनद ॥६॥ बिहुणिय-सणु दूसग्गिष्णा-कम। रूणि अणि णाई जमु काल-समु।।७। कुमार-विर हिरामण-णहरु । कोला-मित्त-मर-पसर ।। || अद-बिन्द्रय साठ-पादिय-ययणु । रत्तप्य-गुस-परिहा-पY ॥९॥ खय-सायर-स्व-गम्भार-गिरु । लाल-देगा कपडुइय-सिरु ।।108 घत्ता तं पेक्यवि हरिणाहिनइ भजण स-मुच्छ महियले पहइ । विजा-पाणएँ उपाधि भायास वसन्तमाल रडई ॥१॥ [८] 'हा समीर पवणाय अगिल पक्षणा । हरि-कियन्त दन्तन्त र वक्ष अक्षणा 1|१॥ हा कम्मु काई किउ केउमइ खल सुक्ष्य रूहसहि कवण गइ ॥२॥ हा साय महिन्द मइन्टु धरें। सु.पागणांकत्ति पडिरक्स करें ॥३।। हा मायरिं तुष्टु मि ण संश्रवहि। मुलानिय दुहिय समुत्यवाहि ॥४!] गन्धवहीं देवहाँ दाणवहों। विजाहर-किंण्णर माणवहाँ ॥५॥

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