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एगुणवीसमो संधि
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घत्ता-वह सुन्दर था, दुनिया उसे सुन्दर कहती, 'श्रीशैल' इसलिए कि शिलातल चूर्ण किया था। हनुवन्त नाम इसलिए, क्योंकि हनुरुह द्वीपमें उसका लालन-पालन हुआ था ८।।
[१२] यहाँपर भी खरदूषणको मुक्त कराकर तथा रावण और वरुणकी सन्धि कराकर वर पवनंजय जब अपने नगरमें प्रवेश करता है तो उसे अपनी पत्नीका भवन सूना दिखाई दिया । उसने एक स्त्रीसे पूछा, "प्राणप्रिय अंजना कहाँ है ?" यह सुनकर वह कहती है, "नवकदली वृक्षफे गाभके समान सुन्दर उस बालिकाके गर्भको परपुरुषका गर्भ समझकर केतुमतीने उसे कुलगृहसे निकाल दिया ।" यह सुनकर पवनंजय वहाँसे निकल गया। अपनी समानवयंके मित्रोंसे घिरा हुआ बह वहाँ गया जहाँ उसकी ससुराल थी कि शायद वह प्रिया वहाँ दिखाई देगी? लेकिन उसकी इष्ट प्रिया केवल वहाँ भी नहीं दिखाई दी। इसे असहन करता हुआ पवनंजय कहीं भी चला गया। नीचा मुख किये, दुःखातुर, प्रहसितके साथ वह लौट पड़ा ।।१-९॥ __ घत्ता-केतुमतीसे इस प्रकार कह देना कि हे माँ, तुम्हारे मनोरथ सफल हो गये, पवनंजयरूपी वृक्ष विरहकी ज्वालामें जलकर खाक हो गया ॥१०
[१३] सभी सज्जन बड़ी कठिनाईसे वापस आये । जन्मन, दुर्मन वे रोते हुए बड़ी कठिनाईसे अपने घर गये ।।
प्रतिपक्षका हनन करनेवाला विषादरत पवनंजय भी जंगलमें प्रवेश करता है और पूछता है-अरे हंसोंके अधिराज राजहंस ! बताओ यदि तुमने उस हंसगतिको कहीं देखा हो, अहो दीर्घ-नखवाले सिंह, क्या तुमने उस नितम्बिनीको कहीं देखा है ? हे गज, कुम्भके समान स्तनोंवालीको क्या तुमने