Book Title: Paumchariu Part 1
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 347
________________ एगुणधीसमो संधि [१०] तय वसन्तमालाने उत्तर दिया, उसने उसका (अंजनाका) और अपना सारा वृत्तान्त बता दिया । इसका नाम अंजना सुन्दरी है, यह सती उसी प्रकार शुद्ध और सुन्दर है जिस प्रकार जिनप्रतिमा । यह महादेवी मदनवेगा की कन्या है, यदि महेन्द्रको आप जानते हैं, उन्होंने इसे जन्म दिया है। यह प्रसन्नकीर्तिकी प्रकट पहन है, और पवनंजयकी सुन्दर गृहित ।" यः यापन सुनकर विद्यापरको आँखें आँसूसे भर आयीं | वह बोला, "आदरणीये, मैं महेन्द्रका साला हूँ, प्रसन्नकीर्ति मेरा भानजा है, मैं तुम्हारा सगा मामा हूँ, प्रतिसूर्य हनुरुह द्वीपके राजकुलका।" यह सुनकर, जानकर और अतुल गुणोंकी याद कर वह फिर से रोयो कि पुण्योंके बिना जो कुछ मैंने ( पूर्वजन्ममें ) अर्जित किया था, विधाताने वही मुझे शोक-ऋण दिया है ॥१-९॥ | ___घत्ता हर्षपूर्वक एक दूसरेको स्वागत देते हुए उन्होंने जो एक दूसरेको आलिंगन दिया, उससे अश्रुधारा इस प्रकार वह निकलती है, मानो करुण महारस ही पीड़ित हो उठा हो ॥२०॥ [११] कठिनाईसे उसे ढाढ़स बंधाकर और आँसू पोंछकर मामाने उसे अपने विमानमें चढ़ाकर ले गया। ऐरावतके कुम्भस्थलके समान है स्तन जिसके ऐसी वसन्तमाला जब आकाशमार्गसे जा रही थी, तब वह अत्यन्त सुन्दर बालक विमानसे गिर पड़ा, मानो आकाशतलरूपी लक्ष्मीसे गर्भ ही गिर गया हो। हनुमान् शीघ्र ही धरती पर गिर पड़ा, मानो शिलाके ऊपर विद्युत्पुंज गिरा हो, विद्याधर उसे उठाकर ले गये, मानो जन्मके समय सुरवर ही जिनेन्द्रको ले गये हों। उन्होंने अंजनाको सौंप दिया। उसे धीरज हुआ, जैसे नष्ट हुई निधिको उसने दुबारा पा लिया हो, नरवर प्रतिसूर्यने अपने पुरमें ले जाकर उसका जन्मोत्सव मनाया ।।१-७||

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