Book Title: Paumchariu Part 1
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 346
________________ पउमचरिउ [ 0 ] पुणु वसन्तमालाएँ पड़त्तर दिजइ । णिरवतही जिवन्तु हि 'अक्षणसुन्दरि कामे इम । मणत्रेय-महाविहे तजय । पाय पत्ति भइण । विजाहरु संणिसुर्णेवि दय । 'हउँ माऍ महिन्दी महुण्ड । उ हामि सहायक मारकउ | १ ॥ सइ सुत्र मुन्नू जिह जिण-पडिम ॥२॥ जड़ सुणों महिन्दु सेण जणि ॥३३॥ मणहर पणञ्जयाह घरिणि ॥ ४ ॥ भाड़ वाहम्म भरिय-जय ॥५॥ सु-पसणकित्ति महु भायणउ || ६ || पढिसूरु हणूह - राउलट || || तं णिखुवि जागेवि मरेचि गुणु । अत्तिल्ल हि तारुण्णु पुणु ||८|| आसिहि । तं दिष्णु विहिणं खोय- रिशु ॥९॥ धत्ता ३१४ महसुसाइड अंसु पाणीसर एकमेक भावीलिय । महार पीलियज ॥१०॥ [ 11 ] दुक्खु दुक्खु साहा विणणावि । साउले यि णियय विमाणें चढ़ावें षि ॥ १ ॥ गण सुर-करिवर-कुम्भटथल-धणहुँ । णीसरि वालु अइ- दुखलिउ । माइ वत्ति डिउ इन्हें । उच्चावि पिंड विज्जाहरें हिं । अजण समपिड जाय दिहिं । यि पुरु पसारे त्रिगरवरेंण । जन्ति भञ्जनायें ॥ २ ॥ ग्राहक सिरि गहिजे ॥ ३ ॥ णं विज्जु उप्पर सिलहें ॥४॥ जन्मणे जिणवरु सुरवरें हि ॥५॥ प पढीवर लघु निर्हि || ६ || जम्मोच्छउ कि पडिणियरेण ॥७॥

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