Book Title: Paumchariu Part 1
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 350
________________ पउमचरिउ अहाँ अहाँ असोच पलाय पाणि । कांहें गय पर हुए परहूय-वाणि ॥ अह रुन्द चन्द्र चन्द्राणणिय । अहाँ सिहि कलाव सहि चिहुर मिंग कहि मिट्टि मिन-टोयणिय 11८ ण णिहालिय कहि मि विरह-बिहर' 119 घता 194 विकें साखय-पुर-परमेस्वरेंण मोह-महादुमुदितु किए। मित्रवर्णे पयागु जिषेण जिह ||१०| [ १४ ] सं णि िवड पाय अष्णु विसरवरु | कालमे गामेण खमा विजय गय ||१|| 'जं सयक काळ कृष्णारि । आकाण खम्भे गं आलियड 1 सबल खमंज्जहि कुम्मि महु । 'जह पत्त यस कन्त तनिय । जइ घईं पुणु एह ण य दिहि । घिउ मणु लवि राहिवइ । सच्छन्तु गहन्दु वि संचर | पश्चिरल पासुन मुझइ किह । अक्स-खर-पहर-विद्यारियट || २ || अंसल कियसिद्ध ॥३॥ तर्हि पक्राउ कपूर बहु ||४| तो उ णिचित्ति गहू एसडिय ||५|| तो परमज्यु सणास विधि' ॥६॥ झायन्तु सिद्धि जिह परम - जइ ॥ ७॥ सामिय- सम्माणु वा बीसर ||८|| मव भव- किउ सुक्किय कम्मु जिह ॥ १ ॥ ܒ पत्ता ताम रुपहसिए भक्ति जगण कुग्णाणणहूँ । 'एउ ण जाणहुँ कहि मि गड महएव विभोएं अजहें ॥१५॥ 1

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