Book Title: Paumchariu Part 1
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
३१५
पउमचरिउ
'सुन्दरु' जग सुन्दर मर्णेवि हगुरुह दीखें पवद्वियड
२ ]
एत्त विवरण मेलावेपिणु । रावणही विसन्धि करेपिणु ॥१॥
'एम भणेजहु केदमइ विरह-दवाणल-दीविषय
[
शिव जयरु पईसइ जाब म६ । पेक्खेणु पुच्छिय का वितिय सं शिसुर्णेचि तुम्बइ वालिय । किर ब्छु भनें वि पर णरवरहीं । तं सुर्णेवि समीरणु णीमरिउ । गज सेन्धु जेधु तं सासुरख | पिय इण दि वर सहिम परियत्ति पहसिया-सयण |
घत्ता
'सिरिमल' सिलाय चुष्णु णिउ | 'हृणुषस्तु' नामु តិ तासु किड ||८||
[
'घता
परन्तु मणोरह माएँ तर । पणजय पायषु खयों गढ़ ||१०||
जीसुष्णु तामयि धरिणि वरु ॥२॥ कहि अअणसुन्दरि परण-पिय ॥३॥ 'प्रणव- रम्भ- राज्भ - सोमालियऍ ॥४॥ केउमइऍ लिय कुरूदर ॥ ॥ अमरहिं वयस परियरिउ ॥६॥ किर दरिसाइ सा सुर ॥७॥ असहन्तु पहजणु गउ कहि मि ॥ ८ ॥ दुक्खाउर ओहुलिय- वयण ॥२९॥
पणजओ वि पवित्र उ पुच्छ 'अहाँ सरवर दिट्ठ धण | अहीं रामहंस साहिव । अहीं दीहरणहर मयाहिवइ । अह कुम्मि कुम्भ-सारिष्द्ध थप |
* ]
दुखु सुक्ख परियत्तिय सयक चि सजणा ।
गय रुपन्त णिय-लियों उम्मण-दुम्मणा ||१||
काण पसर विमाय-र ॥२॥ रसमल - दरू - कोमल चलण ||३|| कड़े कहि मि दिन जइ हंस-गद्द ॥४॥ कहें कहि मि मित्र त्रिणि दिनु जइ || ५ || केसई कि दिट्ट सइ सुद्ध-मण || ६ ||

Page Navigation
1 ... 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371