________________
एटीसमो पनि किन्नरो, मनुष्यो, यक्ष, राक्षसो, बचाओ मेरी सखी को, नहीं तो सिंह उसे पकड़ लेगा।" यह सुनकर परोपकारमें हैं बुद्धि जिसकी, तथा जो युद्धमें अजेय है, ऐसा चन्द्रचूड़का पुत्र, विद्याधरराज रविचूड़ वहाँ आया, जहाँ सिंह था, और वह स्वयं अष्टापदका बच्चा बनकर बैठ गया। इस प्रकार सिंहको उसने भगा दिया ।।२-९।।
धत्ता-इतनेमें आकाशसे उतरकर वसन्तमाला अंजनासे मिलती है। (अंजना कहती है ) यहाँ अष्टापद होनेसे वह सिंह नहीं है, वह अष्टापद भी मायासे विलीन हो गया है ॥१०॥
[९] इस प्रकार दोनों में मधुर बातचीत हो ही रही थी तबतक गन्धर्वने एक सुन्दर गीत गाया। उसे सुनकर अंजना अपने मनमें सन्तुष्ट हुई, उसे लगा कि कोई सुधीजन छिपकर घनमें रहता है, जिसने इस असामयिक मरणसे बचाया और यह गन्धर्षगान प्रकाशित किया। इस प्रकार. आपसमें बातचीत करती हुई वे पर्यंक गुफामें रहने लगी। तब चैत्र कृष्ण अष्टमी की रातके अन्तिम पहरके श्रवण नक्षत्र में अंजनाको पुत्र उत्पन्न हुआ जो हल-कमल कुलिश-मीन और कमलयुगके चिह्नोंसे युक्त था। चक्र-अंकुश कुम्भ-शंखसे सहित शुभ लक्षणोंवाला वह अशुभ लक्षणोंसे रहित था। इसके अनन्तर जिसने शत्रुसेनाका नाश किया है और जिसकी प्रभा सूर्यके समान है ऐसे प्रतिसूर्यने आकाशमार्गसे जाते हुए उन दोनोंको देखा । उसने विमानसे उतरकर उनसे पूछा ॥१-२॥
धत्ता-"कहाँ पैदा हुई, कहाँ बड़ी हुई, किसकी कन्या हो, किसकी कुलपुत्रियाँ हो, किसको तुम्हें इतना बड़ा दुःख है जिसके कारण तुम वनमें रोती हुई रह रही हो" ॥१०॥